गया में नक्सलियों द्वारा एक निर्माण कंपनी के आठ वाहन समेत तमाम संपत्ति जलाकर राख कर दिए जाने की घटना चिंताजनक है। इससे यह संकेत भी मिलता है कि प्रशासनिक दावों के विपरीत नक्सलियों के हौसले बुलंद हैं। लेवी वसूली के लिए दहशत पैदा करने के मकसद से नक्सली पहले भी निर्माण कंपनियों को निशाना बनाते रहे हैं। हर घटना के बाद राज्य सरकार आश्वस्त करती है कि इन कंपनियों को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी। इसके बावजूद नक्सली इनकी संपत्ति पर हमले करते रहते हैं। इसके चलते कई कंपनियां राज्य से अपना बोरी-बिस्तर समेट चुकी हैं। नक्सली संगठनों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि पिछले दिनों सुरक्षाबलों ने चार नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराया तो इन संगठनों ने इसका बदला लेने की घोषणा कर दी। पिछले दिनों कई रेल हादसों में नक्सली-आइएसआइ गठजोड़ के साक्ष्य मिलने के बाद स्थिति और चिंताजनक हो गई है। अब इसमें संदेह नहीं रह गया कि बिहार में सक्रिय नक्सली संगठनों को राष्ट्रविरोधी शक्तियों द्वारा गोला-बारूद, असलहे व धन मुहैया कराया जा रहा है। जाहिर है कि नक्सली संगठन आइएसआइ जैसी संस्थाओं की कठपुतली बनकर काम कर रहे हैं। इनके हौसले बुलंद होने की एक वजह यह भी है। केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि इन राष्ट्रविरोधी संगठनों का मनोबल तोडऩे के लिए साझा आक्रामक अभियान चलाएं और इन्हें समूल नष्ट करके ही चैन लें। समय-समय पर इस बात के भी साक्ष्य मिलते रहे हैं कि राज्य में सक्रिय नक्सलियों को प्रभावशाली राजनेताओं का संरक्षण मिलता है। इसमें यदि अंशमात्र भी सच्चाई है तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण कुछ और नहीं हो सकता। इसी प्रकार जो ग्रामीण नक्सलियों को किसी भी तरह की मदद पहुंचाते हैं वे जाने-अनजाने देश और प्रदेश के खिलाफ कार्य कर रहे हैं। नक्सलियों की सक्रियता राज्य के सुख-चैन, विकास और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है। इसे इसी रूप में लिया जाना चाहिए। जो संगठन भारतविरोधी शक्तियों के साथ गठजोड़ करके ट्रेनें उड़ाने की साजिश रच सकते हैं, उनके प्रति किसी भी तरह की हमदर्दी नहीं रखी जानी चाहिए। इन संगठनों के साथ पिछले कई दशकों से बातचीत व संधि प्रयास किए जाते रहे हैं लेकिन यह सारी कवायद अर्थहीन साबित हुई। अब इन संगठनों की रीढ़ पर निर्णायक प्रहार किए जाने की जरूरत है। यदि ऐसा न किया गया तो कोई भी उद्यम इकाई बिहार में निवेश करना पसंद नहीं करेगी। राज्य में शांति और विकास के लिए नक्सली संगठनों का सफाया जरूरी है।
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अब यह साफ हो चुका है कि नक्सली संगठनों का न कोई वैचारिक आधार है और न समाज सुधार की दृष्टि। ये रंगदारों-लुटेरों के गैंग हैं जो धन के लालच में आइएसआइ जैसे भारतविरोधी संगठनों से भी गठजोड़ करने में भी संकोच नहीं करते।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]