पटना में दवा के नाम पर नकली दवाओं के कारोबारियों का पर्दाफाश बेशक राहतबख्श घटना है लेकिन जांच एजेंसियों को तक तब चैन से नहीं बैठना चाहिए, जब तक मौत के इन सौदागरों की सारी जड़ें नष्ट नहीं कर दी जातीं। अभी सिर्फ पटना में इस कारोबार का भंडाफोड़ हुआ है। संभव है, इसका विस्तार राज्य के अन्य हिस्सों या राज्य के बाहर भी हो, लिहाजा गिरफ्तार आरोपितों को रिमांड पर लेकर उनसे पूरा सच उगलवाया जाना चाहिए। नकली दवा नरसंहार जैसा अपराध है। यह मानवता के प्रति क्रूरता है। मरीज इस विश्वास के साथ दवा लेता है कि इससे उसका जीवन सुरक्षित हो जाएगा लेकिन यदि ह्यदवाह्ण ही जिंदगी के लिए खतरा पैदा कर दे तो यह ईश्वर के प्रति भी अपराध है। इस प्रकरण में तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री रामधनी सिंह का नाम आना चौंकाने वाली बात है। श्री सिंह राज्य के वरिष्ठतम नेताओं में एक हैं। इस प्रकरण की जांच में यह जरूर देखा जाना चाहिए कि किन परिस्थितियों में वह एक ड्रग माफिया का कथित सहयोग करने पर बाध्य हुए। संभव है, ऐसा किसी भ्रमवश हुआ हो यद्यपि इससे उनकी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती। पुलिस की प्रारंभिक जांच से संकेत मिले हैं कि यह माफिया बेहद प्रभावशाली है जिसके परिणामस्वरूप ड्रग विभाग की जानकारी में होते हुए भी वह राजधानी पटना में अपना कारोबार चलाता रहा। इस बात के भी संकेत मिले हैं कि इस काले कारोबार में पटना के प्रतिष्ठित सरकारी अस्पतालों के उच्च पदस्थ अधिकारियों की भी संलिप्तता है। अपराधों में सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायक भी जेल गए। यह साख दवा घोटाले में कसौटी पर होगी क्योंकि पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट से इस प्रकरण में कुछ बड़े लोगों के शामिल होने के संकेत मिल रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि पुलिस को पिछले मामलों की तरह इस बार भी खुलकर कार्रवाई करने का मौका मिलेगा। ऐसा होने पर ही इस कारोबार को समूल नष्ट किया जा सकेगा। नकली दवा के कारण जो मरीज मौत के मुंह में चले गए, उसका प्रायश्चित यही है कि इसके अपराधियों को कठोरतम सजा दिलवाई जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]