तुगलकाबाद में कंटेनर से गैस रिसाव का मामला घातक लापरवाही का नतीजा है। लापरवाही की वजह से 475 छात्राएं बीमार पड़ गईं। यह बात अलग है कि ज्यादातर को अस्पताल से छुटटी मिल चुकी है, लेकिन अभी भी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है कि दीर्घावधि मेें उनके स्वास्थ्य पर इन गैसों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस घटना से राजधानी में भय का माहौल उत्पन्न हो गया, सो अलग। यह भी सही है कि इस घटना की सूचना मिलते ही तमाम एजेंसियां सक्रिय हो गईं। दिल्ली और केंद्र सरकार तक हरकत में आ गई। निगरानी के लिए एक आपातकालीन टीम भी गठित कर दी गई है। तब भी सवाल यह उठता है कि ऐसे जहरीले केमिकल वाले कंटेनर का इस तरह से बिना सुरक्षा मानकों का पालन किए खुलेआम घूमना किस हद तक जायज है?
थोड़ा पीछे मुड़कर देखा जाए तो इस तरह की घटना दिल्ली में पहली बार नहीं हुई है। करीब आठ साल पहले मायापुरी औद्योगिक क्षेत्र में भी रेडिएशन फैल चुका है। उस दौरान भी काफी लोग इसकी चपेट में आए थे। उस समय रेडिएशन के शिकार हुए बहुत से लोग तो आज भी विभिन्न शारीरिक विकृतियों से पीडि़त हैैं। जब वह घटना घटी थी, तब भी राष्ट्रीय स्तर तक तमाम एजेंसियां सक्रिय हो गई थीं। करीब माह भर तक तो जांच अभियान ही चलता रहा था। लेकिन नतीजा क्या निकला, उस समय इस दिशा में सुरक्षा मानकों को लेकर जो कुछ भी तय किया गया वह आज तक क्रियान्वित नहीं हो सका। यदि सुरक्षा के जरूरी उपाय किए जाते तो तुगलकाबाद गैस रिसाव की घटना नहीं होती। सच तो यह है कि हमारे यहां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रसायनों और अन्य धातु सामग्री के प्रयोग अथवा इनके लाने ले जाने को लेकर कोई नीति स्पष्ट नहीं है। अगर गैस रिसाव या रेडिएशन फैल जाए तो उस दशा में बचाव के लिए भी पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। ऐसे में इसे सीधे तौर पर सरकार और जिम्मेदार विभागों की लापरवाही नहीं तो फिर क्या कहा जाए। अभी भी समय है कि इस दिशा में गहराई से जांच कर भविष्य के लिए कुछ मानक तय कर दिए जाने चाहिए। हर बार भाग्य इतना अच्छा नहीं होता कि जानमाल का नुकसान टल जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]