गुरु तेग बहादुर अस्पताल में इंजेक्शन लगाए जाने के बाद एक साथ 22 मरीजों की आंखों में संक्रमण होने की घटना इस अस्पताल के अधिकारियों की घोर लापरवाही की दास्तां बयां करती है। इनमें से आठ मरीजों की आंखें तो इस हद तक लाल हो गई थीं कि उन्हें एम्स रेफर करना पड़ गया और उनकी सर्जरी भी करनी पड़ी। प्रारंभिक जांच में इंजेक्शनों के संक्रमित होने की बात सामने आ रही है। हालांकि वास्तविकता का पता लैब से इन इंजेक्शनों की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही चलेगा। इन सबके बावजूद अस्पताल के निदेशक द्वारा इसे डॉक्टरों की लापरवाही नहीं मानने से साफ है कि वे उन्हें बचाने का काम कर रहे हैैं। इस तरह की स्थिति कभी भी सही नहीं कही जा सकती। करीब दो माह पूर्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में भी ऐसी ही लापरवाही सामने आई थी। वहां गंभीर संक्रमण की हालत से जूझ रहे पांच नवजातों को इंजेक्शन के जरिए अमीकासीन और मेरोपेनेम की दवा दी गई थी। दवा देने के कुछ देर बाद ही बच्चों की हालत बिगडऩे लगी और एक नवजात की अगले दिन मौत भी हो गई। इस मामले की जांच रिपोर्ट में अस्पताल कर्मियों की ही लापरवाही सामने आई थी। उसके बाद भी एक दूसरे सरकारी अस्पताल में इस तरह की घटना दुखद है।
अगर धरती का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर इस तरह लापरवाह होंगे तो फिर लोगों का उन पर से विश्वास भी उठने लगेगा। समाज में एक बड़ा तबका ऐसे लोगों का भी है जो सरकारी अस्पताल में सिर्फ इसलिए नहीं जाते क्योंकि वे निजी डॉक्टरों की फीस नहीं दे सकते। वे इसलिए भी जाते हैं कि उन्हें निजी डॉक्टरों से ज्यादा सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की काबिलियत पर भरोसा होता है। लेकिन इस तरह की घटनाओं से वह भरोसा भी टूटता है। निस्संदेह यह एक गंभीर मामला है। इस बाबत सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और डॉक्टरों को भी नैतिकता के नाते अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि उनकी थोड़ी सी लापरवाही किसी की जान ले सकती है या फिर उन्हें ताउम्र के लिए अपाहिज बना सकती है। इसलिए उन्हें मरीज का इलाज करते समय पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]