-------------
राज्य के दूरदराज क्षेत्रों के सैकड़ों गांव में साक्षरता दर महज तीस से चालीस फीसद तक रहना चिंताजनक है, बेटियों को शिक्षित बनाना होगा
----------

मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य की महिलाओं को स्वावलंबी बनाएं जाने की दिशा में एक ओर कदम बढ़ाते हुए राज्य की मेधावी छात्राओं को पचास फीसद सब्सिडी पर स्कूटी दिए जाने का निर्णय सराहनीय है। इससे पहले सरकार ने राज्य के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाली छात्राओं के लिए पहली से लेकर बारहवीं कक्षा की फीस माफ कर राज्य की बेटियों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया था। इस फैसले से राज्य में नि:संदेह बेटियों की साक्षरता दर बढ़ेगी। राज्य विधानपरिषद के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में बेटियों की साक्षरता दर 58 फीसद है, जबकि लड़कों की साक्षरता दर 78 फीसद है। राज्य में साक्षरता की ओवरऑल दर 68 फीसद है। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लड़कों के मुकाबले लड़कियां अभी भी साक्षरता दर में पिछड़ रही हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अभियान के बाद राज्य में पिछले कुछ माह में बेटियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार ने तालीम पाने वाली बेटियों जिनके साठ फीसद से अधिक अंक थे उन्हें आधे दामों पर करीब साढ़े चार सौ स्कूटियां बांटी थीं। विडंबना यह है कि राज्य के दूर दराज क्षेत्र रामबन, गूलगुलाबगढ़, तराल, सहित सैकड़ों गांव हैं, जहां साक्षरता दर तीस से चालीस फीसद तक रह गई है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि लोगों में अभी भी रूढ़ीवादी सोच है कि बेटियां पराया धन है और उन्हें पढ़ाने से कोई फायदा नहीं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि बेटी अगर पढ़ी लिखी होगी तो घर और समाज में उसका मान-सम्मान बढ़ेगा। किसी भी अनहोनी के कारण वे घर की दहलीज में सिमट कर नहीं रहेगी, बल्कि परिवार का पालन पोषण भी कर सकेगी। शहरों में स्थिति गावों के मुकाबले बेहतर है। सरकारी विभागों में एक नजर डालें तो स्वास्थ्य विभाग में 52 फीसद महिलाएं काम कर रही हैं। जबकि हायर शिक्षा विभाग में चालीस फीसद महिलाएं शिक्षा को बढ़ावा दे रही है। स्कूली शिक्षा में तीस फीसद महिलाएं हैं। राज्य सशस्त्र पुलिस बल में करीब पांच फीसद तथा पुलिस में केवल तीन फीसद महिलाएं ही नौकरियां कर रही हैं। राज्य की बेटियों को भी चाहिए कि अन्य विभागों में भी नौकरियों के अवसरों को भी तलाशें। बेटियों को समाज में अगर सशक्त बनाना है तो दूरदराज क्षेत्रों के स्कूलों में बुनियादी ढांचा उपलब्ध करवाना होगा। इतना ही नहीं लोगों को भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियानों को ग्रामीण क्षेत्रों में चला कर उन्हें जागरूक करना होगा। उस घर का तभी उद्धार हो सकता जहां बेटियों शिक्षित होंगी।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]