उस प्रदेश में जहां बेटियों की संख्या, बेटों के मुकाबले चिंताजनक स्तर पर कम हो, वहीं की किसी युवती का देश की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी चुना जाना सुखद संकेत है। मानुषी छिल्लर के पहले भी हरियाणा की दो युवतियां देश की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी चुना जा चुकी हैं। छह साल पहले जब कनिष्ठा धनखड़ चुनी गई थीं, हरियाणा बेटियों के कम अनुपात के कारण कुख्यात था। खास तौर से कनिष्ठा धनखड़ के जिले झज्जर में तो हालात बहुत खराब थे। सन 2001 में झज्जर में एक हजार पुरुषों पर 801 महिलाएं थी, 2011 की जनगणना में जो घटकर 774 रह गई थीं। बाकी जिलों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं थी।

सन 2011 का जिक्र इसलिए कि यह वही वर्ष था, जब हरियाणा ने कुड़ीमार के कलंक को धोने के प्रयास संजीदगी से शुरू किए थे। चार वर्ष बाद इसमें और तेजी आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पानीपत से बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की मुहिम शुरू की। यह एक जंग थी। सरोकार की। आज भी जारी है। इसका परिणाम यह है कि आज झज्जर में बेटियों का अनुपात 900 से ऊपर पहुंच गया है। पूरे हरियाणा में आशातीत सुधार हुआ है। इसलिए झज्जर की ही मानुषी के इस मुकाम पर पहुंचने से खुशी दोगुनी हो जाती है। इससे हमारे प्रदेश के उन रूढ़िवादी लोगों को भी अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाने में मदद मिलेगी, जो बेटियों को बेटों की अपेक्षा कमतर मानते हैं।

उन्हें सोचना चाहिए कि बेटियां हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल कर रही हैं। चाहे वह चिकित्सा का क्षेत्र हो, अंतरिक्ष विज्ञान का क्षेत्र हो, या राजनीति का या फिर साहित्य का, हर जगह अपनी योग्यता साबित कर रही हैं। खेलों में तो वे शिखर पर हैं। सेना में अधिकारी बनकर अपना योगदान दे रही हैं। रोमांचकारी कारनामे कर रही हैं। अभी हाल ही में हिसार की अनीता कुंडू ने जान की बाजी लगाकर चीन की तरफ से एवरेस्ट पर विजय हासिल की। वह इसके पहले नेपाल की तरफ से एवरेस्ट विजय कर चुकी थीं। बेटियों की ये उपलब्धियां सुकून देनी वाली हैं। बावजूद इसके हम बेटियों के प्रति अभी उतने जागरूक नहीं हैं, जितना होना चाहिए। एक बहुत वड़ा वर्ग ऐसा है, जो बेटियों को बेटों की अपेक्षा कमतर मानता है। जब तक बेटियों को कमतर मानने वालों की सोच नहीं बदलती, हमें यह जंग जारी रखनी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]