वर्षा जल संचयन को लेकर दिल्लीवासियों का गंभीर न होना चिंता की बात है। हर साल गर्मियों में पानी की किल्लत होती है और मानसून में हजारों-लाखों लीटर पानी व्यर्थ चला जाता है। इस स्थिति के बावजूद लोगों का जागरूक नहीं होना चिंताजनक भी है। इसका स्पष्ट अनुमान इसी से लग जाता है कि जल बोर्ड ने पिछले साल वर्षा जल संचयन यंत्र का आसान डिजाइन तैयार किया ताकि दिल्लीवासी कम खर्च में वर्षा जल संचयन करने के लिए अपने घरों में रिचार्ज पिट बनवा सकें। तीन जिलों में रेन सेंटर भी शुरू किए गए, लेकिन लोग वहां वर्षा जल संचयन यंत्र लगाने की तकनीकी लेने पहुंच ही नहीं रहे। ऐसे में जल बोर्ड ने बाकी नौ जिलों में रेन सेंटर खोले जाने की योजना ठंडे बस्ते में डाल दी है। मतलब, पेयजल संरक्षण को लेकर दिल्लीवासी स्वयं तो उदासीन हैं ही, जल बोर्ड के प्रयासों में भी योगदान देने या भागीदारी करने से बच रहे हैं।
विचारणीय पहलू यह है कि पेयजल प्रकृति की वह अनमोल देन है जिसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। पेयजल के स्रोत भी सिमटते जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में पानी की राशनिंग भी शुरू हो गई है। ज्यादातर इलाकों में सुबह-शाम ही पानी की आपूर्ति होती है, वह भी निर्धारित घंटों के दौरान। दूसरी तरफ दिल्ली में भूजल का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। जल बोर्ड से प्राप्त आंकडों के ही मुताबिक हर साल 381 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) भूजल का दोहन हो रहा है। इसके मुकाबले बरसात में बमुश्किल 281 एमसीएम पानी रिचार्ज होता है। इस तरह हर साल भूजल का 100 एमसीएम अधिक दोहन हो रहा है। जबकि एक अनुमान के मुताबिक मानसून के दौरान राजधानी में करीब 200 क्यूबिक मिलियन लीटर पानी किसी पुख्ता तैयारी के अभाव में व्यर्थ चला जाता है। अगर यह पानी बचाया जा सके तो दिल्लीवासियों की तीन महीने तक की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि जल संरक्षण समय की जरूरत है और इसके लिए जन जागरूकता भी उतनी ही जरूरी है। इस कार्य में सफलता तभी मिलेगी जब सब लोग मिलजुलकर सक्रिय भूमिका अदा करें।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]