खतरनाक गठजोड़
राज्य के जेलों में वीआइपी सुविधाएं भोगते अपराधी और अपराधियों के साथ अधिकारियों का गठजोड़ राज्य की शांत वादियों के लिए बड़ा खतरा है।
उत्तराखंड की शांत वादियां अकसर देशभर में होने वाले बड़े अपराधों के कारण सुर्खियों में रहती हैं। किसी न किसी रूप में बड़े अपराधियों का प्रदेश से कनेक्शन जुड़ ही जाता है। कभी गवाही के लिए तो कभी शरणस्थली के रूप में अपराधी इन शांत वादियों में आकर दस्तक देते रहे हैं। ऐसे में राज्य की फिजा को शांत बनाए रखने में पुलिस और जेल प्रशासन की भूमिका अहम हो जाती है, लेकिन जिस तरह से जेलों में अपराधियों की आवभगत और अधिकारियों की उनसे मिलीभगत सामने आ रही है, वह राज्य की शांत वादियों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। रुड़की के एक व्यापारी से रंगदारी मांगने में डिप्टी जेलर की संलिप्तता सामने आने के बाद एक बार फिर जेलों की सुरक्षा व्यवस्था सवालों के घेरे में है। इस घटना में एक अधिकारी की संलिप्तता ने एक बार फिर जेलों की सुरक्षा के दावों की पोल खोल दी है। प्रदेश में जेलों की सुरक्षा पर पहले से सवाल उठते रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब अपराधियों और जेल के अधिकारियों के बीच संबंधों का खुलासा हुआ है। पहले भी कई बार इस प्रकार की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जेल में बंद अपराधी पहले भी जेल के भीतर से अपने नेटवर्क संचालित करते रहे हैं। शासन की ओर से समय-समय पर कराए गए निरीक्षणों में भी तमाम अवैध समान बरामद किए जाते रहे हैं। अपराधियों को वीआइपी सुविधा दिए जाने के मामले भी अक्सर जगजाहिर होते रहते हैं। जब भी जेलों की सुरक्षा पर सवाल उठे, दिखावे के लिए सुरक्षा को और पुख्ता करने का दावा किया गया। हालांकि, ऐसा हुआ होता तो यह ताजा मामला नहीं होता। रुड़की जेल के बाहर सुनील राठी और चीनू पंडित गैंग के बीच गोलीबारी और इसमें तीन लोगों की मौत के प्रकरण में भी यह बात सामने आई थी कि इस घटना का ताना बाना जेल के भीतर ही बुना गया। इसके बाद कुख्यात अमित भूरा की फरारी मामले में भी ऐसी ही तस्वीर उभरी कि अमित भूरा ने भी अपने भागने की पूरी योजना जेल के भीतर बैठ कर ही बनाई थी। इन तमाम घटनाओं से साफ हो जाता है कि राज्य के जेलों में न केवल सुरक्षा चूक आम बात है, बल्कि अधिकारियों की नाक के नीचे ही तमाम अपराधी अपने हिसाब से सब करते हैं। स्थिति यह है कि जेल में सुरक्षा के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही आधुनिक उपकरण। यह स्थिति राज्य की आंतरिक सुरक्षा और राज्य के भविष्य के लिहाज से कतई ठीक नहीं कही जा सकती। इस मामले में राज्य की सरकार और जेल प्रशासन को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]