भारत समेत करीब सौ देशों में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों के कंप्यूटर ठप करने की कारस्तानी एक बड़ी आफत ही है। इस घटना ने यही स्पष्ट किया कि यदि साइबर सुरक्षा को लेकर सभी देशों ने एकजुट होकर गंभीरता नहीं दिखाई तो आने वाले समय में साइबर संसार के शरारती तत्व कहर ढा सकते हैं। फिलहाल इसका आकलन ही किया जा रहा है कि पिछले दो दिनों में तमाम देशों के कंप्यूटर निष्क्रिय किए जाने से किसको कितनी क्षति हुई, लेकिन जिस तरह कई देशों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गईं और संचार एवं अॉटो कंपनियों में कामकाज ठप होने के साथ बैंकिंग सिस्टम प्रभावित होने की आशंका है उससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि ऐसे हमले कैसी तबाही मचा सकते हैं? ऐसे साइबर हमले महत्वपूर्ण दस्तावेज नष्ट करने के साथ ही कल-कारखानों में उत्पादन रोकने और हवाई एवं रेल यातायात को भी ठप करने का काम कर सकते हैं। ऐसा होने का मतलब है जन-जीवन का बाधित हो जाना। फिलहाल यह कहना कठिन है कि एक तरह से आधी दुनिया को प्रभावित करने वाले साइबर हमले के पीछे किसका हाथ है, लेकिन यह साफ है कि वे अत्यंत दुस्साहसी हैं। ऐसी खबरे हैं कि हैकर ठप पड़े कंप्यूटरों को फिर से चलाने के एवज में फिरौती मांग रहे हैं और शायद कुछ लोग उसे देने को मजबूर भी हैं।
एक साथ इतने अधिक देशों को जिस कंप्यूटर वायरस के जरिये निशाना बनाया गया उसके बारे में यह संदेह है कि उसे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी से चोरी किया गया। माना जा रहा है कि संकट का कारण बने साइबर हथियार को दूसरे देशों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया गया था। स्पष्ट है कि इस सबकी पुष्टि नहीं होने वाली, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि कई देशों की सरकारें अपने विरोधी देशों में साइबर सेंधमारी करवाती हैं। कभी इसका मकसद उनके दस्तावेज चुराना होता है तो कभी उनकी किसी योजना-परियोजना को बाधित करना। शायद सभी को याद होगा कि विकीलीक्स ने यह साबित किया था कि साइबर सेंधमारी के जरिये अमेरिका किस तरह अपने मित्र देशों की भी जासूसी करता था। यदि साइबर हमलों का सिलसिला थमा नहीं तो ऐसे भी सवाल उठ सकते हैं कि क्या इंटरनेट वास्तव में तरक्की का सबसे सशक्त जरिया है? आज जब यह स्पष्ट है कि इंटरनेट के बगैर गुजारा नहीं हो सकता तो फिर सभी देशों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे साइबर सेंधमारी के खिलाफ ईमानदारी से सक्रिय हों। इसमें सफलता तभी मिलेगी जब संचार तकनीक का गलत इस्तेमाल रोकने वाले तत्वों पर हर हाल में शिकंजा कसा जाएगा। इस मामले में विश्व बिरादरी कितनी पीछे है, इसका पता इससे चलता है कि आम तौर पर साइबर हमलों को अंजाम देने वालों के बारे में मुश्किल से ही कोई जानकारी मिल पाती है। साइबर हमलों के लिए जिम्मेदार अपराधियों का पता-ठिकाना खोजना इसीलिए मुश्किल होता है, क्योंकि जिस देश में वे मौजूद होते हैं वहां की सरकारें पीड़ित-प्रभावित देश का सहयोग नहीं करतीं। यदि यही रवैया रहा तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि सारी दुनिया साइबर हमलों से हलकान नजर आए।

[  मुख्य संपादकीय  ]