अफसर किस तरह हरियाणा सरकार की योजनाओं पर अड़ंगा लगाते हैं, इसका उदाहरण मजदूरों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराने की योजना है। सरकार मजदूरों को 10 रुपये में भोजन उपलब्ध कराना चाहती है। इसके लिए कैंटीन खोली जानी हैं, लेकिन फैक्ट्री मालिक कैंटीन के लिए जगह उपलब्ध कराने को तैयार नहीं हैं। अधिकारियों को भी जगह ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं है। ऐसा भी नहीं कि पैसे की कोई कमी हो। श्रम एवं सन्निर्माण मजदूर वेलफेयर बोर्ड का करीब 2200 करोड़ रुपये का बजट है, पर अभी तक अधिकारी यह तय ही नहीं कर पाए हैं कि सस्ती कैंटीन में मजदूरों को 10 रुपये में एक समय का भोजन उपलब्ध कराया जाए अथवा 30 रुपये में तीनों समय का। अधिकारी यह भी तय नहीं कर रहे हैं कि कोई गरीब व्यक्ति जो मजदूर नहीं है और वह कैंटीन से 10 रुपये में भोजन लेना चाहता है तो उसे यह मिलेगा अथवा नहीं। कैंटीन से भोजन लेने का तरीका क्या होगा? क्या इसके लिए मजदूरों के कार्ड बनेंगे? अधिकारी इन सब बातों पर कोई चिंता नहीं कर रहे हैं। प्रदेश सरकार के अब तक के कार्यकाल में यह बात कई बार उठ चुकी है कि अधिकारी जानबूझ कर योजनाओं को सिरे नहीं चढ़ाना चाहते हैं। यही वजह है कि सीएम की ज्यादातर घोषणाओं पर काम नहीं हो रहा है। अधिकारी कहीं कोई बहाना बना देते हैं, कहीं कोई। जहां कोई बात नहीं होती वहां भी फाइल दबाए रहते हैं। प्रदेश सरकार ने डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की घोषणा कर डॉक्टरों की हड़ताल खत्म कराई थी। मगर अधिकारी उस फाइल को रोके रहे। जब फिर डॉक्टरों ने हड़ताल की धमकी दी और सरकार का रुख फाइल दबाए रखने पर सख्त हुआ तब जाकर फाइल क्लीयर हुई। ऐसा ही एक उदाहरण अभी हाल का है। प्रदेश सरकार ने रोडवेज कर्मियों की हड़ताल खत्म कराने को नई परिवहन नीति वापस लेने की घोषणा की। लेकिन बगैर मंत्री को जानकारी दिए सचिव ने हाई कोर्ट ने शपथ पत्र दे दिया कि नई परिवहन नीति वापस नहीं ली जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]