प्रदेश में पेयजल संकट गंभीर रूप ले रहा है। गर्मी की दस्तक के साथ ही अधिकतर शहरों में जलापूर्ति टैंक सूख रहे हैं और आपूर्ति लाइन भी ठप होने के कगार पर है। हरियाणा को मुख्यत: पश्चिमी यमुना नहर व भाखड़ा से पानी मिलता है। दोनों ही स्रोत फिलहाल पानी की कमी झेल रहे हैं। इसका असर है कि नहरें सूखी हैं और जलापूर्ति विभाग बेबस है। ऐसे में मांग से करीब आधी पेयजल आपूर्ति हो रही है और उसकी भी पूर्ति भूजल संसाधन से हो रही है। वह भी तब संभव है जब कृषि क्षेत्र में पानी मांग काफी कम है। प्रत्येक वर्ष गर्मी के सीजन में इस स्थिति का सामना करना पड़ता है लेकिन इस बार मौसम की शुरुआत में ही स्थिति गंभीर होती दिख रही है। अगर यह स्थिति कुछ दिन और चली दक्षिणी व पश्चिमी हरियाणा के कई शहरों में स्थिति विकराल रूप ले सकती है। ऐसी स्थिति में प्रशासन केवल बचत का ही विकल्प सुझा रहा है।
यह सही है कि फिलहाल जल संकट से राहत की उम्मीद नहीं है लेकिन यह संकट चेतावनी है कि हमें अभी से दीर्घकालिक तैयारियां करनी होंगी। प्रदेश के पास संसाधनों का टोटा है। एसवाईएल का मसला दशकों से लटके रहने के कारण जलापूर्ति दशकों से सीमित है और मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में आवश्यक है कि हम वर्षा के पानी को सहेजना शुरू करें। ऐसे टैंक व तालाब बनाए जाएं जिनके पानी का इस्तेमाल हम ऐसे संकट के समय में करें। भूजल रिचार्ज करने की व्यवस्था हो। कहने को बड़े भवनों में भूजल रिचार्ज सिस्टम होना लाजिमी है लेकिन सरकारी भवन ही इसकी पालना नहीं कर रहे। लाखों क्यूसेक पानी आसमान से बरस कर गंदे नालों में बह जाता है और हम कुछ माह बाद पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसते दिखते हैं। इसी तरह दूषित पानी को शुद्ध कर उसे गैर पेयजल कार्यों में उपयोग की रणनीति भी हमारे पास स्पष्ट नहीं है। जिस तेजी से संकट बढ़ रहा है, उससे तरह की तैयारी अभी दिख नहीं रही है। न सरकार इस पर गंभीर है और न ही आमजन पानी की चिंता को समझ पा रहा है। यही वजह है कि पानी को सहेजने के प्रयास नाकाफी दिख रहे हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]