इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जिस वक्त राज्य सरकार चंपारण सत्याग्रह शताब्दी मना रही है, उसी वक्त राज्य के बड़े नेताओं की अपराधियों के साथ घनिष्ठता के किस्से सामने आ रहे हैं। इसमें भी सीनाजोरी वाली स्थिति है। सजायाफ्ता पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के साथ लालू प्रसाद यादव की बातचीत का टेप वायरल होने के बाद राजद के एक बड़े नेता का बयान आया कि शहाबुद्दीन को किसी भी कीमत पर पार्टी से निकाला नहीं जाएगा। भारतीय परंपरा में पथभ्रष्ट हो जाने पर परिवार के सदस्य को बाहर कर दिया जाता है। शहाबुद्दीन दो सगे भाइयों की तेजाब से नहलाकर हत्या करने के अलावा तमाम अन्य संगीन मामलों में आरोपित हैं। इसके बावजूद राजद उन्हें पार्टी में रखना चाहता है तो यह विषय मतदाताओं के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए। लोकतंत्र में जनमत सर्वोपरि होता है। वक्त आने पर मतदाता उचित-अनुचित का फैसला करेंगे। लालू प्रसाद-शहाबुद्दीन प्रकरण पर चल रहे हो-हल्ला के बहाने अवसर है कि सभी राजनीतिक दल अपने-अपने गिरेबान में झांककर देखें कि अपराधियों से संबंध रखने के मामले में उनके अपने दामन की क्या स्थिति है। बाकी दल यह तर्क दे सकते हैं कि उनके यहां शहाबुद्दीन जैसा अपराधी नहीं है लेकिन यह तो छोटा अपराधी और बड़ा अपराधी वाली बात हो गई। राजनीति में यदि बड़े अपराधियों का रहना अनुचित है तो क्या छोटे अपराधियों का रहना जायज है? असलियत यह है कि अपराधियों के प्रति मोह के मामले में कोई राजनीतिक दल पाक-साफ नहीं है। मेरा अपराधी अच्छा और उसका अपराधी खराब का फॉर्मूला सिर्फ चेहरा छिपाने की कवायद है। खुद को गांधी का अनुयायी मानने वाले राज्य का यह चेहरा विरोधाभास दर्शाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मौजूदा कार्यकाल में समाज सुधार की दृष्टि से उल्लेखनीय फैसले हुए हैं। राज्य को शराबमुक्त करने के बाद नशामुक्त करने का अभियान चल रहा है। बाल विवाह और दहेज के खिलाफ भी कमर कसी जा रही है लेकिन अपराधियों, खासकर 'सफेदपोश अपराधियों' के खिलाफ कोई रोडमैप नजर नहीं आता। दबंग अधिकारियों के सामने जेल प्रशासन की लाचार स्थिति की मुख्य वजह अपराधियों को प्राप्त राजनीतिक संरक्षण है। शहाबुद्दीन और अन्य दबंग अपराधियों को जेल में प्राप्त मोबाइल फोन व अन्य सुविधाएं इसका उदाहरण हैं। इसी वजह से सर्वोच्च न्यायालय ने शहाबुद्दीन को बिहार से दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट करवाया। ऐसी घटनाओं से राज्य की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि सभी राजनीतिक दल राज्य की छवि बदलने के सवाल पर एकराय हैं तो सबको दबंगों और अपराधियों का मोह त्यागना होगा। राजनीति साफ-सुथरी होगी तो राज्य का चेहरा भी उसी तरह चमकेगा।
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सिर्फ लालू प्रसाद को शहाबुद्दीन के साथ रिश्ते रखने के लिए निशाने पर लेने से वास्तविक समस्या हल नहीं होगी। यह संकल्प सभी दलों को लेना होगा कि वे चुनाव जीतने या वोटबैंक पॉलिटिक्स के लिए अपराधियों का दामन नहीं थामेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]