यह दुर्भाग्य की बात है कि झारखंड गठन के बाद से ही आपसी राजनीतिक खींचतान के चलते इस राज्य को विकास की जो ऊंचाई मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल सकी। पहले तो कहा गया बहुमत वाली सरकार नहीं होने के कारण विकास अवरुद्ध है। बहुमत के साथ वाली रघुवर सरकार में स्थितियां थोड़ी बदली हंै। विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी भी राज्य के विकास के लिए उसका औद्योगिकीकरण प्राणतत्व है। मगर झारखंड में अब तक हुए हजारों करोड़ के एमओयू धरातल पर नहीं उतर सके। मोमेंटम झारखंड के जरिए भी निवेश का माहौल बनाने का बेहतर प्रयास हुआ है। मगर इसे धरातल पर उतारने का काम बाकी है। गोड्डा में अडाणी के पावर प्लांट के रास्ते में जो अड़चन है, वह महज एक उदाहरण है कि सूबे में निवेश करना कितना मुश्किल है। करीब 11 हजार मेगावाट क्षमता के साथ निजी क्षेत्र में देश के सबसे बड़े बिजली उत्पादक अडाणी ग्रुप के पास निवेश के लिए कई राज्यों में ढेर सारे प्रस्ताव हैं। मगर यहां कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। इनदिनों यहां फिर से अनशन-प्रदर्शन जारी है। गोड्डा व पोड़ैयाहाट प्रखंड की 917 एकड़ भूमि पर 13906 करोड़ की लागत से अडाणी पावर प्लांट लगना है। इसमें 800-800 मेगावाट की दो यूनिट शामिल है। कंपनी ने इसके लिए 2110 एकड़ भूमि की मांग राज्य सरकार से की थी, लेकिन सरकार के निर्देश पर 917 एकड़ के अधिग्रहण पर सहमति बनी। यह भारत का पहला प्लांट होगा जो नवीनतम पर्यावरण उत्सर्जन मानकों के तहत चलेगा। इसे लगाने में करीब एक हजार करोड़ का अतिरिक्त खर्च होगा। पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव के नेतृत्व में स्थानीय कुछ रैयत इस प्लांट का विरोध कर रहे हैं, जबकि बड़ी संख्या में अधिग्रहण क्षेत्र के रैयत सरकार को अपनी जमीन देने का शपथ पत्र सौंप चुके हैं। डर यह है कि कहीं यह मामला बंगाल के सिंगुर की तरह न हो जाए। सिंगुर से टाटा के हटने के बाद अन्य औद्योगिक घराने भी आज तक निवेश से भाग रहे हैं। हालांकि, अब उनके लिए सरकार कालीन बिछा रही है। राज्य सरकार को चाहिए कि सभी संबंधित पक्षों को बैठाकर आम सहमति के साथ संतोषजनक रास्ता निकाले। स्थानीय आबादी के पुनर्वास को लेकर सरकार द्वारा आश्वस्त किया जाना ही इसका रास्ता है।

हाइलाइटर
गोड्डा में अडाणी के पावर प्लांट के रास्ते में जो अड़चन है, वह महज एक उदाहरण है कि सूबे में निवेश करना कितना मुश्किल है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]