-----सिर्फ कानून बनाने भर से अवैध शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई भी नहीं जा सकती, इसके लिए सख्ती से अमल भी जरूरी है। -----राज्य में आबकारी अधिनियम को लेकर सरकारें कितनी उदासीन रही है। आसानी से समझा जा सकता है कि १०७ साल से अवैध शराब की बिक्री के कानून कड़े करने पर विचार नहीं किया गया। ऐसा किया गया होता तो एक दिन पहले फर्रुखाबाद के गांव गुरऊशादी नगर में जहरीली शराब से मौत की घटना न हुई होती। सिर्फ इस गांव में ही नहीं, कई जिलों में अवैध शराब की बिक्री के मामले इस बीच सामने आए हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए कि इलाहाबाद की जिभिया पहाड़ी पर यमुना किनारे अवैध शराब की फैक्ट्री पकड़ी गई थी। ऐसी तमाम फैक्टि्रयां आज भी चल रही हैं। इस धंधे में लगे लोगों का हौसला इसलिए भी बुलंद है क्योंकि इन्हें स्थानीय स्तर पर आबकारी अधिकारियों और पुलिस की शह हासिल है। इस गठजोड़ की वजह से ही लोगों का गुस्सा सड़क पर आ रहा है और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन रहा है। एक दिन पहले गोरखपुर में सत्ताधारी दल के ही विधायक को कच्ची शराब का यह व्यवसाय बंद कराने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा और एक महिला पुलिस अधिकारी भी लोगों के आक्रोश का शिकार हुईं। हाईवे से शराब की दुकानें हटाने के आदेश के बाद जगह-जगह शराब के ठेकों पर प्रदर्शन भी इसी आक्रोश का हिस्सा था।जहरीली शराब से मौत की प्रदेश में यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले लखनऊ, भदोही, एटा और फर्रुखाबाद में दर्जनों लोग मौत का शिकार हो चुके हैं। इसे देखते हुए ही आबकारी कानून को सख्त करने की तैयारी की गई है और जहरीली शराब से किसी की मृत्यु होने पर दोषियों को सजाए मौत का प्रावधान किया जा रहा है, फिर भी लोगों में अभी भय नहीं पैदा हो सका है। कुटीर उद्योग की तरह जहरीली शराब का व्यवसाय दूरदराज के क्षेत्रों में चल रहे हैं। आबकारी अधिकारी मानते हैं कि कच्चा शराब में मिलावट की वजह से मौतें होती हैं। अधिक मुनाफे के लिए मिथाइल एल्कोहल मिलाकर शराब की बिक्री की जाती है जो जानलेवा साबित हो सकता है। सब जानते हुए भी विभाग इस पर अंकुश नहीं लगा सका है। वस्तुत: सिर्फ कानून बनाने भर से अवैध शराब की बिक्री पर पाबंदी लगाई भी नहीं जा सकती, इसके लिए सख्ती से अमल भी जरूरी है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]