हाईलाइटर
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- वित्तीय अनियमितता करने वालों के खिलाफ यथाशीघ्र जांच शुरू की जानी चाहिए। तय किया जाना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हों।
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मुख्यमंत्री पंचायतों में भ्रष्टाचार पर सख्त हैं। साफ चेतावनी दी है कि भ्रष्ट मुखिया बर्खास्त होंगे। दरअसल पिछले कुछ महीनों से लगातार पंचायतों में अनियमितता की बातें सामने आ रही हैं। पंचायती राज व्यवस्था के तहत ग्राम पंचायतों को पहली बार मिली (पहले यह रकम जिला परिषद को मिलती थी) 14 वें वित्त आयोग की रकम मुखिया ने मनमाने तरीके से खर्च कर दी। इसके जरिए सोलर लाइट, पानी की टंकी आदि खरीद लिए। स्कूलों में पंखे लगवाए और हैंडपंप की मरम्मत कराई। यही नहीं, इन मुखिया ने यह भी नहीं समझा कि किसी भी खरीद के लिए कम से कम शॉर्ट टेंडर का निकालना जरूरी है जबकि, ग्रामीण विकास विभाग के पंचायती राज सचिव ने सभी जिलों को पत्र भेज कर बताया था कि सोलर लाइट की खरीद झारखंड रिन्यूवेबल एनर्जी अथॉरिटी की निर्धारित दर पर ही की जानी है। इसके बाद भी अथॉरिटी की निर्धारित दर क्या, बाजार रेट से भी दोगुने दाम पर घटिया सोलर लाइटें खरीद लीं गईं। 14 वें वित्त आयोग की गाइडलाइन में है कि यह रकम पेयजल पर खर्च नहीं की जाएगी क्योंकि सरकार ने गांवों में पेयजल की व्यवस्था के लिए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग को आवंटन दिया है। अधिकतर मुखिया ने रकम पानी टंकी की खरीद और हैंडपंप की मरम्मत पर खर्च कर दी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मुखिया समूह को 14 वें वित्त आयोग के दिशा-निर्देशों से अवगत ही नहीं कराया गया। पहली बार जीत कर आए मुखिया की कार्यशाला तक नहीं कराई गई। यह निर्देश जिले के आला अधिकारियों और प्रखंड विकास अधिकारियों की फाइलों में दबी रह गई। इन्हें मुखिया को तब भेजा गया, जब वे खरीद कर चुके थे। 14 वें वित्त आयोग की रकम के दुरुपयोग की जानकारी मिलते ही ग्रामीण विकास विभाग सक्रिय हुआ और उसने इसे रोकने के लिए पिछले साल ही जिलों को पत्र लिखे लेकिन, इसके बाद भी जिलों का प्रशासनिक तंत्र हरकत में नहीं आया। 14 वें वित्त आयोग की रकम पर अब बवाल मचा है। पूरे मामले में सभी जिलों का प्रशासन भी दोषी है। वित्तीय अनियमितता करने वालों के खिलाफ यथाशीघ्र जांच शुरू की जानी चाहिए। यह भी तय किया जाना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में न हों। जिला प्रशासन की पारदर्शी मॉनिटरिंग हो। इसका सदुपयोग हो तो विकास की किरणें समाज की अंतिम पंक्ति तक पहुंचनी तय है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]