आरक्षण के लिए धरने-प्रदर्शन कर रहे जाट आंदोलनकारी एक बार फिर सरकार से टकराव की राह पर चलते दिख रहे हैं। दिल्ली कूच के एलान ने सरकार व प्रशासन को हड़कंप तो मचाया ही है, इससे प्रदेश में सौहार्द फिर खतरे में दिख रहा है। आंदोलनकारियों द्वारा बातचीत के दरवाजे बंद करने से टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। अभी तक संयम का पालन कर रहे आंदोलनकारी दो-दिन से आक्रामक वक्तव्य देकर भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, जाटों का एक गुट सरकार से वार्ता का पक्षधर रहा है और आरक्षण की लड़ाई कानूनी ढंग से छेड़े हुए है। ऐसे में मलिक गुट का आक्रामक रुख प्रदेश के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। कई मायनों में यह लड़ाई सामाजिक कम और राजनीतिक अधिक दिखाई पड़ रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव में यशपाल मलिक गुट की रणनीति विफल होने के बाद एक बार फिर हरियाणा में वह मुखर हो रहे हैं।
पिछले वर्ष जाट आंदोलन के दौरान जो हुआ, प्रदेश उसे दोहराने के लिए तैयार नहीं है। समाज के सभी वर्गों ने बड़ी मशक्कत के साथ बिगड़े सामाजिक ताने-बाने को संभालने का प्रयास किया। खापों व अन्य संगठनों की सक्रियता से इस बार जाट आंदोलन अभी तक नियंत्रित रहा। अब एक बार फिर कुछ ताकतें युवाओं को भड़काकर माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर रही हैं। क्या प्रदेश को दोराहे पर धकेलकर कोई भी संगठन आगे बढ़ सकता है? ऐसा संभव नहीं है। दो दिन पूर्व बात समझौते तक पहुंच गई थी लेकिन अचानक स्थिति ऐसी बदली की सबके माथे पर चिंता की लकीरें आ गईं। अब मुख्यमंत्री स्वयं सामने आकर बात करने पर सहमति जता चुके हैं पर आंदोलनकारी वापस मुड़ने को तैयार नहीं हैं। निश्चित तौर अभी देर नहीं हुई है। खापों और अन्य सामाजिक संगठनों को तुरंत बीच-बचाव के लिए आगे आना होगा। सभी पक्षों को वार्ता की मेज पर लाकर समाधान खोजा जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]