दिल्ली के रिहायशी इलाकों में ट्रक अब एक नई समस्या बनते जा रहे हैं। खासतौर पर बिल्डिंग मैटीरियल और एलपीजी गैस के सिलेंडर ढोने वाले ट्रक जब रिहायशी इलाकों में आवाजाही करने लगते हैं। इससे इन इलाकों का सुकून छीन रहा है। डीजल चालित इन ट्रकों का धुंआ जहां हवा में जहर घोल रहा है वहीं रिहायशी क्षेत्रों में जहां-तहां इनकी पार्किंग हादसों को दावत देती प्रतीत होती हैं। विडंबना यह कि इस समस्या को लेकर कोई सरकारी विभाग गंभीर नहीं है। नगर निगम तमाम निर्देशों के बावजूद शहर की पार्किंग नीति तय नहीं कर पा रहा है तो ट्रैफिक पुलिस सिर्फ इतना भर कर रही है कि शहरों में ट्रकों की एंट्री समय से हो। इससे किसी को कोई सरोकार ही नहीं है कि शहर में एंट्री कर लेने के बाद इन ट्रकों का मूवमेंट क्या रहता है। ऐसे में इनसे उत्पन्न हो रही समस्याओं का समाधान भी नजर नहीं आता।
रिहायशी इलाकों का माहौल व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्रों के माहौल से एकदम अलग होता है। यहां दिल्लीवासी शांति और सुकून चाहते हैं। वहां का माहौल प्रदूषण से मुक्त होना चाहिए और सड़कों पर भी व्यवसायिक वाहन जरूरत के अनुसार ही नजर आने चाहिए। लेकिन दिल्ली में रिहायशी इलाकों का वातावरण भी बिगड़ रहा है। हर समय यहां व्यावसायिक वाहनों की गतिशीलता से इनकी आबोहवा भी अब बिगड़ती जा रही है। बेतरतीब पार्किंग झगड़ों का कारण बन रही है। दिल्ली सरकार और अन्य सभी सरकारी एजेंसियों को इस दिशा में गंभीरता से सोचना चाहिए। अगर लुटियंस जोन में नियम-कायदों का पालन हो सकता है तो नगर निगम के क्षेत्र में भी अवश्य होना चाहिए। दिल्ली देश की राजधानी ही नहीं, अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए एक आदर्श भी है। यदि आदर्श का स्वरूप ही बिगडऩे लगेगा तो बाकी जगहों पर क्या असर पडेगा। बहुत बार सख्ती भी जरूरी होती है। पार्किंग नीति अविलंब बनाई जानी चाहिए। व्यावसायिक वाहनों की पार्किंग निर्धारित जगहों पर ही होनी चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती से निपटा जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया गया और समय रहते सतर्कता नहीं बरती गई तो दिल्ली में रहना दूभर होने लगेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]