-----ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब बड़ी-बड़ी परियोजनाएं न केवल समय से पहले पूरी हुई हैं, बल्कि निर्धारित बजट से कम में यह काम हो गया।-----मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अफसरों से हफ्ते भर में फिजूलखर्ची रोकने को कहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट का निरीक्षण करने पहुंच गए थे। यह पिछली सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट था, जिसके मुताबिक 1500 करोड़ रुपये की लागत से लखनऊ में गोमती नदी का विकास लंदन की टेम्स नदी की तर्ज पर इसी मार्च तक करना था लेकिन, 900 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी अभी काफी काम अधूरा है। अपव्यय, लेटलतीफी और खामियों से बिफरे मुख्यमंत्री ने सभी विभागों के प्रमुख सचिवों को आदेश दिया है कि वे अपने विभागों में परियोजनाओं की समीक्षा करके फिजूलखर्ची रोकें।यह हालत केवल गोमती रिवर फ्रंट परियोजना की ही नहीं है, बल्कि यही हालत लगभग सभी परियोजनाओं की है। या तो वह अनुपयोगी हैं या फिर इतनी खर्चीली कि उसे पूरा करने के लिए आर्थिक संसाधन जुटाना भारी पड़ रहा है। नतीजतन अन्य जरूरी परियोजनाएं या विकास कार्य प्रभावित होते हैं। जनता की गाढ़ी कमाई बंदरबांट में निकल जाती है। आम लोगों में यह धारणा फैलती जा रही है कि परियोजनाएं भ्रष्टाचार के लिए बनाई जाती हैं। चहेते ठेकेदार, एजेंसी या कंपनी को जिम्मेदारी सौंपना, परियोजना का ओवर बजट निर्धारित करना, लेटलतीफी के माध्यम से खर्च और बढ़ा देना, गुणवत्ता पर ध्यान न देना आदि ऐसी बातें सामने आती हैं। अन्यथा ऐसा क्या कारण होता है कि जिस परियोजना को बनाने के लिए बड़े बड़े योजनाकार लगते हैं, उसे समय पर पूरा न करने पर किसी की कोई जवाबदेही तय नहीं की जाती। जाहिर है कि कुछ तो ऐसी गड़बड़ी होती है जिसकी पर्देदारी की जाती है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब बड़ी-बड़ी परियोजनाएं न केवल समय से पहले पूरी हुई हैं, बल्कि निर्धारित बजट से कम में यह काम हो गया लेकिन, ऐसा तभी संभव है जब शुरू से लेकर आखिर तक सारे काम पारदर्शी तरीके से और जज्बे के साथ किया जाए। आमतौर से होता यह है कि कोई भी ठेका या परियोजना आवंटित होने से पहले उसके लिए बजट से किसे कितना हिस्सा जाएगा, यह पहले निर्धारित हो जाता है। कुल मिलाकर फिजूलखर्ची रोकना है तो संबंधित एजेंसी या ठेकेदार की सीधे-सीधे जिम्मेदारी निर्धारित करनी पड़ेगी। ताकि वह गुणवत्तापूर्ण कार्य निर्धारित समय और बजट में गारंटी के साथ करने के लिए बाध्य हो। कार्य की लगातार निगरानी, समीक्षा और आकलन भी किया जाना जरूरी है। वस्तुत: पाई-पाई के हिसाब से ही फिजूलखर्ची रुकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]