सबका विकास के वादे को अमलीजामा पहनाने के लिए जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार किए जाएं। यह तभी संभव है जब सबको समान तरीके से शिक्षा मुहैया कराई जाए। इसमें किसी तरह का भेदभाव नही होना चाहिए और न ही सरकार के स्तर से ऐसा करने को किसी को छूट मिलनी चाहिए। 

दिनों दिन सरकारी बनाम निजी शिक्षा के बीच खाई बढ़ती जा रही है। क्योंकि अपने बच्चों को निजी स्कूलों में ही पढ़ाने को प्राथमिकता देने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है, चाहे ऐसे लोग शहर में रहते हों या ग्र्रामीण इलाकों में। निजी स्कूलों के प्रति लोगों के इसी मोह का दोहन करने में कोई कोताही नहीं करते निजी स्कूलों के संचालक। इसीलिए हर जगह उनकी मनमानी की बातें हमेशा चर्चा में रहती हैं। चाहे शिक्षण शुल्क का मामला हो या नामांकन राशि की या विकास शुल्क समेत विभिन्न प्रकार के शुल्क के नाम पर अभिभावकों पर आर्थिक बोझ डालने की, प्राइवेट स्कूल हमेशा व हर जगह आरोपों के घेरे में होते हैं। सड़क से लेकर सदन तक में इनके इस तरह केकारनामों की चर्चा होती रहती है। यही कारण रहा कि निजी स्कूलों पर भी नकेल कसने की कवायद शुरू हो चुकी है। तमिलनाडु व दिल्ली जैसे राज्यों में कड़े कानून बनाए जा चुके हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इनकी नकेल कसी है। अच्छी बात यह है कि अब अपने राज्य झारखंड में भी इस दिशा में कार्रवाई आरंभ हो चुकी है। अगले तीन महीने में इसे लेकर न्यायाधिकरण गठन की बात शिक्षा मंत्री ने कही है जो स्वागतयोग्य है। लेकिन इसके साथ इसका भी ध्यान रखना होगा कि अपने राज्य में बनने वाले न्यायाधिकरण के पास निजी स्कूलों की मनमानी रोकने व उन्हें सरकारी नियम कानून का पालन कराने का समुचित अधिकार हो। कभी-कभी सरकार के स्तर से बननेवाले न्यायाधिकरण या आयोग नख-दंत विहीन भी हो जाया करते हैं जिससे उनके गठन का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो पाता। अपने यहां न्यायाधिकरण के गठन के वक्त इस तथ्य पर गंभीरता से गौर करना होगा तभी हम इसे सार्थक बना पाएंगे। न्यायाधिकरण को सरकारी नियम कानून या निर्देश का अनुपालन नहीं करने वाले निजी स्कूलों पर कठोर आर्थिक दंड लगाने के साथ स्कूलों की संबद्धता रद करने का अधिकार मिलना चाहिए। जिससे स्कूल के संचालक कोई नया बहाना या रास्ता निकालकर न बच सकें।
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हाइलाइटर
निजी स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए गठित होने वाले न्यायाधिकरण या आयोग को स्कूलों पर ठोस कार्रवाई करने का अधिकार मिले। तभी इसका रिजल्ट मिल सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]