उत्तर प्रदेश सरकार की पहली कैबिनेट बैठक का इंतजार बेसब्री से किया जा रहा था तो इसीलिए कि इसमें किसानों के कर्ज माफ करने का फैसला लिया जाता है या नहीं? जैसा संभावित था, राज्य सरकार ने दो करोड़ से अधिक छोटे एवं सीमांत किसानों का करीब 36 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ करने का फैसला लिया। इस फैसले का इंतजार अन्य राज्यों को भी था, क्योंकि यदि योगी सरकार को केंद्र के पैसे से किसानों का कर्ज माफ करने की सुविधा मिलती तो फिर वे भी केंद्रीय सत्ता पर इसके लिए दबाव डालते। यह अच्छा हुआ कि योगी सरकार ने किसान राहत बांड के जरिये किसानों का कर्ज माफ करने का रास्ता निकाला। ऐसा कोई रास्ता इसलिए आवश्यक था, क्योंकि केंद्रीय वित्त मंत्री की ओर से यह स्पष्ट किया जा चुका था कि जो राज्य अपने किसानों के कर्जे माफ करना चाहें वे उसका खर्च खुद उठाएं, क्योंकि यह संभव नहीं कि केंद्र सरकार एक राज्य के किसानों की कर्ज माफी में सहयोग दे और अन्य के लिए मना कर दे। अब देखना यह है कि अन्य राज्य अपने किसानों के कर्जे माफ करने के लिए क्या तरकीब निकालते हैं? वे जो भी करें, यह समय की मांग है कि किसानों के कर्जे माफ करने की नीति पर नए सिरे से विचार हो। यह इसलिए, क्योंकि किसानों को यह संदेश जा रहा है कि बैंक से लिए गए कर्ज को चुकाने की जरूरत नहीं। इस संदेश का मूल कारण किसान कर्ज माफी के जरिये चुनावी लाभ लेने की बढ़ती प्रवृत्ति है। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं, क्योंकि कर्ज माफी का सिलसिला यही बता रहा कि इससे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा और उलटे बैंकों का वित्तीय अनुशासन बिगड़ रहा। सबसे खराब बात यह है कि किसान इस उम्मीद में रहने लगा है कि नई सरकार उनके कर्जे माफ कर सकती है। इसके चलते कई बार वह सक्षम होते भी कर्ज चुकाने की कोशिश नहीं करता।
आम तौर पर किसान कर्ज माफी के मामले में यह तर्क दिया जाता है कि जब उद्योगपतियों के भारी-भरकम कर्जे माफ हो सकते हैं तो फिर गरीब किसानों के कर्ज माफ करने में क्या परेशानी है? एक तो यह तर्क सही नहीं, क्योंकि उद्योगपतियों के फंसे कर्ज बट्टे खाते में डाले जाते हैं और दूसरे, किसी एक मामले में मजबूरी भरा फैसला बाकी मामलों के लिए नियम नहीं बन सकता। यह भी ध्यान रहे कि फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डालना और कर्ज माफी में अंतर है। संप्रग सरकार ने 2008 में जब किसानों का साठ हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था तब राहत पाने वाले ज्यादातर किसान महाराष्ट्र के थे। आज स्थिति यह है कि फिर से उनके कर्जे माफ करने की मांग हो रही है। कुछ यही स्थिति अन्य राज्यों के उन किसानों की है जो पहले भी कर्ज माफी की राहत पा चुके हैं। अच्छा हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि आज की सबसे बड़ी जरूरत किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है और कर्ज माफी अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धांतों एवं विकास की राजनीति के खिलाफ है। यदि कर्ज माफी का सिलसिला कायम रहा तो फिर देश के विकास का सिलसिला कब और कैसे गति पकड़ेगा?

[ मुख्य संपादकीय ]