हरियाणा रोडवेज की बसें नहीं चल रही हैं। प्रदेश वासी परेशान हैं। उन्हें किस बात की सजा प्रदेश सरकार और रोडवाज कर्मचारी दे रहे हैं? जब सरकार को पहले से पता था कि रोडवेज के कर्मचारी प्रदेश में 273 रूटों पर निजी बसों को चलाने के विरोध में हैं तो उनसे पहले ही बात की जानी चाहिए थी। ऐन वक्त पर बात की गई। तब भी दोनों पक्षों अपनी बात पर अड़े रहे। फिर वही हुआ। जो होता रहा है। रोडवेज कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। नतीजा, दो दिन से रोडवज बसें नहीं चल रही हैं। ऐसा नहीं कि हड़ताल खत्म नहीं होगी। खत्म होगी, लेकिन प्रदेशवासियों को कुछ दिन तक परेशानियों से रूबरू कराने के बाद। ऐसा अतीत में भी होता रहा है। कुछ सरकार झुकेगी तो कुछ कर्मचारी। पहले की तरह। सवाल यह है कि जब समझौता होना ही है तो पहले क्यों नहीं? त्रास देने वाली बात यही है।
आखिर जो बैठक सोमवार को बुलाई गई, वह पहले क्यों नहीं बुलाई गई। सरकार ने अंतिम तारीख का इंतजार क्यों किया? इस बैठक में दोनों पक्ष नहीं झुके। कर्मचारी नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री के साथ हुई बैठक में विभाग ने निजी बसों को परमिट जारी करने के लिए कोई नई पॉलिसी नहीं होने की बात कही थी। फिर किस आधार पर निजी बस ऑपरेटरों को परमिट दिए जा रहे हैं? इस पर अधिकारियों ने कहा कि इस संबंध में पहले की ही पॉलिसी के अनुसार ही परमिट दिए जा रहे हैं और यह विभाग का अधिकार है। इसके बाद कर्मचारी नेता बैठक से बाहर आ गए और हड़ताल की घोषणा हो गई। रोडवेज कर्मचारियों के समर्थन में बाकी कर्मचारी संगठन भी आ गए हैं। दोनों के संघर्ष में जनता पिस रही है। जनता तो यह नहीं कह रही कि कर्मचारियों की बात न सुनी जाए। जनता इतना चाहती है कि उसकी आवागमन की सुविधा महफूज रहे। सरकार को इस पर चिंतन करना चाहिए। कर्मचारी नेताओं को भी सोचना चाहिए और बार-बार हड़ताल पर जाने से परहेज करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]