श्रीनगर संसदीय सीट के उप चुनाव के दौरान हिंसा में आठ लोगों के मरने और करीब सत्तर के घायल होने की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतंत्र के इस अनुष्ठान में अलगाववादियों की कोशिश होती है कि लोगों को भड़का कर चुनाव में विघ्न डाला जाए। जिसकी आशंका थी वैसा ही हुआ। अलगाववादी समर्थकों ने चुनाव से पहले ही हिंसा के दौर को जारी रखते हुए चुनाव वाले दिन बीरवाह (बडगाम) में मतदाताओं में खौफ पैदा करने के लिए पोलिंग स्टेशनों पर हमला बोलते हुए करीब चौदह इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों को तोड़ दिया। हिंसा की करीब दो सौ घटनाओं के सामने आने से जाहिर है कि यह तोडफ़ोड़ सुनियोजित ढंग से की गई ताकि मतदाताओं को उनके अधिकारों से दूर रखा जाए। श्रीनगर-बडगाम संसदीय सीट पर मात्र 7.14 फीसद ही मतदान हो पाया। अलगाववादियों के मंसूबों को देखते हुए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मई में प्रस्तावित पंचायती चुनाव कराना भी आयोग के लिए चुनौती होगी, क्योंकि यह जमीनी स्तर से जुड़े चुनाव हैं और इसका दायरा भी काफी बड़ा है। ऐसे में हरेक उम्मीदवार को सुरक्षा मुहैया करवाना चुनौती से कम नहीं होंगे। यहां तक कि पांच पूर्व सरपंचों ने सरकार से पहले ही सुरक्षा देने की गुहार लगाई है। वर्ष 2011 में पंचायती चुनाव के बाद आतंकवादियों ने चौदह सरपंचों की हत्या कर दी। कई के घरों में आतंकवादियों ने हमले कर उन्हें धमकाने की कोशिश भी की ताकि सरपंच और पंच इस्तीफा दे दें। अलगाववादियों की कोशिश होती है कश्मीर में लोग अपनी मर्जी से नुमाइंदे न चुन सके। श्रीनगर संसदीय सीट के उप चुनाव में हिंसा फैला कर अलगाववादियों ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे कश्मीर में लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते। उनकी कोशिश है कि घाटी में निजाम ए मुस्तफा कायम हो और अलगाववादियों की तूती बोले। अगर घाटी में जनतंत्र होगा तो नि:संदेह उस क्षेत्र का विकास संभव होगा। घाटी में पिछले तीन दशकों से जारी आतंकवाद के कारण विकास नहीं हो पाया, जिसका नुकसान वहां की जनता ने सहा। राज्य में अब चुनी हुई सरकार बनी है, लेकिन कुछ राष्ट्रविरोधी तत्व सरकार को काम नहीं करने देना चाहते। वे युवाओं को गुमराह कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकना चाहते हैं। गत वर्ष भी जुलाई में शुरू हुआ हिंसा का दौर कई माह तक जारी रहा, जिसका नुकसान युवाओं को उठाना पड़ा। युवाओं को भी चाहिए कि वे अलगाववादियों के मंसूबों को समझें जिसमें सबका भला है। घाटी में पर्यटन सीजन शुरू होने वाला है अगर हिंसा का दौर जारी रहा तो इसका नुकसान जनता को झेलना पड़ेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]