जरूरत अब इस बात की है कि गंभीरता प्रयासों में भी नजर आए और हर हाल में लक्ष्य प्राप्ति तय समय में प्राप्त की जाए
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दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण विभाग द्वारा मौजूदा वर्ष में शिशु मृत्यु में 36 फीसद तक कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित करना निस्संदेह एक सराहनीय कदम है। शिशु मृत्यु दर कम करने एवं बच्चों को सेहतमंद बनाने के लिए विभाग जागरुकता अभियान चलाएगा। एम्स से शुरू की गई कंगारू मदर केयर योजना के तहत डॉक्टर और नर्स महिलाओं को प्रसव के बाद स्तनपान कराने व बच्चों की देखभाल की तकनीक बताएंगे। उन्हें बताया जाएगा कि बच्चे को स्तनपान कराते समय गोद में कैसे रखना है। यह भी बताया जाएगा कि कंगारू की तरह मां यदि अपने बच्चे को गोद में छाती से लगाकर रखती है तो उससे बच्चों का कई बीमारियों से बचाव होता है। इसके साथ-साथ ही महिलाओं को बताया जाएगा कि बच्चे को कितने देर तक छाती से सटाकर रखा जाना चाहिए और दिन भर में कितनी बार स्तनपान करना बच्चों के सेहत के लिए बेहतर होता है।
यह जरूरी भी है क्योंकि वर्ष 2015 की जन्म पंजीकरण रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में शिशु मृत्यु दर प्रति 100 बच्चों में 24 के आसपास है। जबकि वर्ष 2013 व वर्ष 2014 में यह आंकड़ा मात्र 22 था। कहने का मतलब यह कि बच्चों के स्वास्थ्य मानकों में सुधार के स्थान पर गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2015 में जन्म के एक साल के अंदर दिल्ली में कुल 1,24,516 बच्चों की मौत हुई थी। इनमें से 8695 ऐसे शिशु थे जिन्होंने जन्म के एक साल के अंदर दम तोड़ दिया। किसी भी राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश के लिए यह स्थिति बेहतर नहीं कही जा सकती। इसे सीधे तौर पर प्रदेश सरकार की असफलता भी कहा जाएगा। अगर नवजात बच्चे तक स्वस्थ नहीं होंगे तो बाकी समाज के स्वास्थ्य के लिए क्या किया जा सकेगा! जरूरत अब इस बात की है कि गंभीरता प्रयासों में भी नजर आए और हर हाल में लक्ष्य प्राप्ति तय समय में प्राप्त की जाए। इसके लिए सरकार को डॉक्टरों और नर्सों की बाकायदा जिम्मेदारी तय करनी होगी। बिना जिम्मेदारी तय किए काम नहीं चलने वाला। समय-समय पर योजना की निगरानी भी करनी होगी। यदि जरा भी ढिलाई बरती गई तो निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करना नामुमकिन होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]