केंद्र व राज्य सरकार ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में टीबी बीमारी की जांच के लिए डायग्नोस्टिक वैन की सेवा शुरू कर सराहनीय कदम उठाया है। इस वैन में डिजिटल एक्सरे के अलावा बलगम की जांच की सुविधा उपलब्ध है। निश्चित रूप से इस प्रयास का परिणाम अच्छा निकलेगा। जांच की सुविधा आसानी से सुलभ होने पर लोग इसके लिए आगे आएंगे तो अधिक से अधिक टीबी मरीजों की पहचान हो सकेगी। पहचान होने पर उनका इलाज भी हो सकेगा। इस कदम के लिए केंद्र सरकार की संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के पदाधिकारी बधाई के पात्र हैं। अब राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि संस्था द्वारा दिए गए इन सात डायग्नोस्टिक वैन का संचालन सही ढंग से हो सके। राज्य में इस संबंध में पूर्व का अनुभव ठीक नहीं रहा है। केंद्र द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत दिए गए कई वाहन आरसीएच, नामकुम में सड़ रहे हैं। ये वाहन नियमित रूप से गांवों का दौरा करे और लोगों की जांच हो, इसे सुनिश्चित करने की जवाबदेही राज्य सरकार की भी है। चूंकि झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है जहां के चौबीस में तेरह जिलों में इनकी ही संख्या अधिक है, इसलिए इस तरह के डायग्नोस्टिक वैन की सेवाएं दूसरे जिलों में भी शुरू होनी चाहिए। केंद्र भी इससे वाकिफ है कि जनजातियों में एक लाख की आबादी पर 703 व्यक्ति टीबी के मरीज हैं, जबकि आम जनसंख्या में एक लाख की संख्या पर 256 ही टीबी के मरीज हैं। ऐसे में झारखंड का दावा और मजबूत हो जाता है। खासकर आदिवासी बहुल तेरह जिलों में तो यह सेवा जितनी शुरू हो उतना ही अच्छा होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2025 तक टीबी के उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए इस तरह के डायग्नोस्टिक वैन चलाने के अलावा लोगों के बीच व्यापक जागरूकता चलाने की जरूरत है। खासकर आदिवासी समाज के बीच। इस बीमारी के लिए कुपोषण भी सबसे बड़ा कारण है। झारखंड में यह समस्या भयावह है। केंद्र व राज्य सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए।

 स्थानीय संपादकीय- झारखंड