राजधानी के 20 थानों में पब्लिक फेसिलिटेशन डेस्क स्थापित करने की घोषणा दिल्ली पुलिस की सराहनीय पहल है। पुलिस आयुक्त का दावा है कि अब दिल्लीवासियों को अपनी शिकायत दर्ज कराने अथवा पुलिस संबंधी कोई जानकारी लेने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। इन डेस्क पर तेज तर्रार महिला फेसिलिटेशन आफिसर की तैनाती की जाएगी। महिला आफिसर थानों में शिकायत व मदद के लिए पहुंचे लोगों की हरसंभव मदद करेंगी। प्रथम चरण में पब्लिक फेसिलिटेशन डेस्क के लिए सब इंस्पेक्टर स्तर की 60 महिला अधिकारियों का चयन किया गया है। यह महिला अधिकारी एसएचओ को रिपोर्ट न कर सीधे डीसीपी के अंतर्गत कार्य करेंगी। इनका पहनावा भी साड़ी होगा। सभी थानों में फिलहाल 3-3 महिला अधिकारियों की तैनाती की जाएगी। वे डेस्क पर तीन शिफ्ट में 24 घंटे काम करेंगी। यह महिला अधिकारी लोगों की समस्याओं को शांत भाव से सुनेंगी और उन्हें यथासंभव सुलझाने का प्रयास करेंगी। इन महिला अधिकारियों को लोगों से कैसे पेश आएं, इसके लिए तीन दिन का विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है।
अभी तक की स्थिति पर निगाह डालें तो पुलिस थाने में आगंतुकों की पहली मुलाकात वहां तैनात ड्यूटी आफिसर से होती है। ड्यूटी आफिसर के कई तरह के कामों में उलझे होने के कारण लोगों को काफी इंतजार करना पड़ता है। वहीं, महत्वपूर्ण ड्यूटी लग जाने की स्थिति में लोगों की जांच अधिकारी और थाने के एसएचओ से मुलाकात नहीं भी हो पाती थी। इस स्थिति में पीड़ति बार-बार थाने के चक्कर काटने को मजबूर होते थे। लोगों को इस प्रकार की समस्या का सामने न करना पड़े, इसी के लिए पुलिस ने थानों में पब्लिक फेसिलिटेशन डेस्क की स्थापना की योजना बनाई है। इस योजना की इसलिए भी सराहना की जानी चाहिए क्योंकि पुलिस और पब्लिक के बीच जो दूरियां खत्म नहीं होतीं, उसे पाटने में यह डेस्क अवश्य ही मददगार साबित होगा। एक और बड़ी समस्या यह कि आज भी पुलिस थानों में जाते हुए आम आदमी डरता है। उसके मन में हिचक रहती है कि थाने में पता नहीं कौन मिलेगा, क्या बात करेगा। कहीं हमारी परेशानी सुलझाने की बजाय हमें फंसा ही न दे। बहुत से लोग तो परेशानी में होने के बावजूद इसी वजह से थाने जाते तक नहीं। इस ²ष्टि से पुलिस आयुक्त की यह पहल सकारात्मक है। अगर थाने में प्रवेश करने पर एक पढ़ी लिखी, सभ्य और खाकी वर्दी से अलग साड़ी में कोई महिला मुखातिब होगी तो आधा डर वहीं खत्म हो जाएगा। जो डर बचा रहेगा, वह उस महिला अधिकारी के सहयोगात्मक व्यवहार से खत्म हो जाएगा। जरूरत अब केवल इसी बात की है कि जिस मंशा के साथ यह योजना शुरू की जा रही है, वह ईमानदारी से अपना आकार पा जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]