शिक्षक को समाज में पथ प्रदर्शक के रूप में सम्माननीय दृष्टि से देखा जाता है। किसी भी समाज में सुधार की मुहिम में शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान रहता है, क्योंकि वह देश के भविष्य की जड़ों को सींचता है। महिला शिक्षक यदि अपने-अपने क्षेत्र में जाकर महिलाओं को खुले में शौच न जाने के लिए प्रेरित करेंगी तो यह तय है कि इससे स्वच्छता को प्रयासों को गति मिलेगी। इसलिए शिक्षा विभाग ने स्कूलों में तैनात महिला शिक्षिकाओं को खुले में शौच रोकने की जिम्मेवारी देकर सही फैसला किया है। निश्चित ही आगामी 25 सितंबर तक प्रदेश को खुले में शौच मुक्त करने के लक्ष्य को पूरा किया जाने की पूरी संभावना है। शिक्षा विभाग के निर्देशों के अनुसार सुबह और शाम पांच बजे से सात बजे तक महिला शिक्षकों को संबंधित गांवों में ड्यूटी देनी है। लेकिन कहीं न कहीं इसकी व्यवस्था को भी देखना जरूरी है कि महिला शिक्षकों को क्षेत्र में लोगों के पास जाने में असुविधा न हो और उनमें असुरक्षा की भावना न पनपे।
अभी तक शिक्षकों की ड्यूटी मतदान करवाने, जनगणना करने, पोलियो ड्रॉप पिलाने और सरकार की अन्य योजनाओं के प्रचार-प्रसार में लगती ही आई है। शिक्षकों को इसके लिए प्रोत्साहित किया जाना जरूरी है। सरकार के निर्देश के मुताबिक शिक्षिकाओं को अपने क्षेत्र में सफाई पर लेक्चर देते हुए खुले में शौच न करने के प्रति जागरूक करना है और फिर आठ बजे स्कूल में जाकर हाजिरी भी देनी है। हालांकि शिक्षकों की ड्यूटी सिर्फ जागरूकता सप्ताह के दौरान ही लगाई गई है। अन्य व्यवस्थाओं पर गौर करना भी जरूरी है, ताकि यह जिम्मेदारी महज खानापूर्ति बनकर न रह जाए। शिक्षा विभाग का यह प्रयास कारगर साबित हो सकता है, लेकिन संबंधित क्षेत्र के आवागमन के साधन, महिला शिक्षकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए शिक्षा विभाग को शिक्षिकाओं को प्रेरित करना जरूरी है। कई क्षेत्र ऐसे भी हो सकते हैं, जहां महिला शिक्षकों का जाना परेशानी भरा हो। इन सब बिंदुओं पर सरकार को विचार करना होगा और शिक्षिकाओं के लिए भयमुक्त व सहज वातावरण उपलब्ध कराना होगा। उम्मीद है कि प्रदेश सरकार ऐसा करेगी।

 [ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]