पिछले साल जब राज्य के पटना सहित कई इलाके बाढ़ की विभीषिका का सामना कर रहे थे, उस वक्त बाढ़ के कारण-निवारण पर खासी चर्चा और बहस हुई थी। गंगा में गाद का मुद्दा खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उठाया था। केंद्र सरकार ने भी इन बातों का संज्ञान लिया था। उस वक्त ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब बाढ़ की समस्या का कोई न कोई समाधान जरूर निकलेगा। देखते ही देखते साल गुजर गया। अगले महीने मानसून अपना लाव-लश्कर लेकर बिहार आ धमकेगा, जबकि बाढ़ नियंत्रण को लेकर अब तक कुछ भी नहीं किया जा सका। मुख्यमंत्री समय-समय पर हर संभव मंच पर गंगा में गाद का मुद्दा उठाते रहे। केंद्र सरकार ने इसे अपेक्षित तवज्जो नहीं दिया। इस मुद्दे पर बातें अब भी जारी हैं। केंद्रीय विशेषज्ञों की टीम गंगा की गाद का सर्वे भी कर गई लेकिन फिलहाल ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि केंद्र सरकार इस बारे में किस निष्कर्ष पर पहुंची। बिहार में बाढ़ विकराल रूप लेकर आती है और अपने तटों को तबाह करके ही लौटती है। यह तय है कि गंगा की गाद या फरक्का बांध को लेकर फिलहाल कुछ नहीं होने जा रहा। इसे देखते हुए राज्य सरकार को चाहिए कि तटबंधों की मरम्मत सहित ऐसे सभी उपक्रम समय रहते कर लिए जाएं जिनसे बाढ़ के कारण होने वाली जन-धन हानि न्यूनतम की जा सके। राज्य सरकार पिछले साल बाढ़ पर नियंत्रण नहीं कर सकी थी। मौजूदा हालात में ऐसा कर पाना संभव भी नहीं है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की सुरक्षा और राहत के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभूतपूर्व इंतजाम करवाए थे। मुख्यमंत्री खुद बाढ़ राहत शिविरों में गए थे और वहां रह रहे ग्रामीणों की सुविधा का जायजा लिया था। पिछले साल कई बांध खतरे की जद में आ गए थे जिन्हें प्रशासन ने दिन-रात जुटकर टूटने से बचा लिया था। इस साल बेहतर होगा कि संवेदनशील बांध पहले ही चिन्हित करके उनकी पुख्ता मरम्मत करवा दी जाए। इसके अलावा पिछले साल के अनुभव के आधार पर ऐसे सभी मोर्चे दुरुस्त रखे जाएं जहां कठिनाई महसूस हुई थी। बाढ़ के दौरान पशु भी संकट से घिर जाते हैं। उनके चारा की समस्या खड़ी हो जाती है। इस दृष्टि से भी पहले ही तैयारी कर ली जाए तो बेहतर होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]