जम्मू में बिहार से लाए गए गरीब बच्चों का यहां एक कागज फैक्टरी में बंधुआ मजदूर बनाकर उनका शोषण किया जाना गहन चिंता का विषय है। पुलिस ने विगत दिवस ऐसे तीस बच्चों को फैक्टरी मालिक के चंगुल से मुक्त करा उन्हें उनके पैतृक गांव भेज तो दिया लेकिन सवाल यह उठता है कि बच्चों के शोषण के खिलाफ काम कर रही सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं इनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती? जम्मू शहर के सैन्य छावनी सतवारी में चल रही फैक्टरी में बच्चों को बंदी बनाकर कई वर्षो से उनका शोषण हो रहा था। इन बाल श्रमिकों को मात्र दो हजार रुपये वेतन की बात तो कही गई थी लेकिन उन्हें कई माह से वेतन और भर पेट खाना भी नहीं मिल रहा था। विडंबना यह है कि पढ़े लिखे समाज में बच्चों के शोषण की घटनाएं झकझोर देती है। इस अमानवीय घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है। जम्मू-कश्मीर में ऐसी घटनाओं का घटित होना समाज में नैतिक मूल्यों और जागरूकता की कमी को दर्शाता है। आज भी कुछ लोगों की मानसिकता और उनकी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं आया है। भारत विकासशील देश है। कुछ प्रदेशों में गरीबी होने का लोग फायदा उठा कर बाल शोषण कर अपना स्वार्थ साधने की कोशिश करते हैं। अभी भी देश के विभिन्न प्रदेशों में बच्चे कूड़ा बीनने, ईंटों के भट्ठों, पटाखे बनाने तथा बीड़ी सिगरेट बनाने वाली फैक्टियों, घरेलू नौकरी के अलावा असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। हद तो यह है कि उनकी सुनवाई कहीं भी नहीं। बेशक कई संस्थाओं को बच्चों के पुनर्वास का जिम्मा सौंपा गया है, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। श्रम विभाग को भी चाहिए कि वह समय समय पर ऐसी घटनाओं का संज्ञान ले। शोषित बच्चे भी समाज का हिस्सा हैं। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि उन्हें भी उनके अधिकार दिए जाएं। सामाजिक और आर्थिक समस्या को गंभीरता से लेना होगा, तभी देश प्रगति की दिशा में अग्रसर होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]