अराजक आंदोलन
मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन ने जिस तरह और अधिक उग्र एवं अराजक रूप धारण कर लिया है उससे यह साफ है कि उसे भड़काया जा रहा है।
मध्य प्रदेश में किसानों के आंदोलन ने जिस तरह और अधिक उग्र एवं अराजक रूप धारण कर लिया है उससे यह साफ है कि उसे भड़काया जा रहा है। किसी के लिए भी यह समझना कठिन है कि आखिर बड़े पैमाने पर वाहनों को जलाने के साथ सड़क और रेल यातायात बाधित करकेकिसानों को क्या हासिल हो रहा है? क्या इससे उनके प्रति आम लोगों की सहानुभूति उमड़ पड़ेगी अथवा उनकी मांगें अधिक न्यायसंगत नजर आने लगेंगी? यदि कोई आंदोलन इस तरह अराजकता के रास्ते पर जाता है तो वह न केवल अपने उद्देश्य को पराजित करता है, बल्कि जनता की हमदर्दी भी खो देता है। मंदसौर, देवास और अन्य जिलों में हालात काबू करने के लिए मध्य प्रदेश सरकार को जिस तरह केंद्रीय सुरक्षा बलों की जरूरत पड़ रही है उससे यह स्पष्ट है कि वह समय रहते इसका अनुमान नहीं लगा सकी कि किसानों का यह आंदोलन किस रास्ते पर जा रहा है? केवल यह कहने से काम नहीं चलने वाला कि किसानों के बीच असामाजिक तत्व सक्रिय हैं और विरोधी नेता संकीर्ण राजनीतिक लाभ के लिए माहौल बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। राज्य सरकार को इसकी चिंता पहले दिन से करनी चाहिए थी कि किसानों के बीच शरारती तत्व सक्रिय न होने पाएं। उसे कई सवालों के साथ इसका भी जवाब देना होगा कि क्या किसानों को उकसाने में खुद भाजपा के असंतुष्ट नेताओं का भी हाथ है? इस सवाल का चाहे जो जबाव हो, यह ठीक नहीं कि राज्य सरकार पहले किसानों की जिन मांगों को मानने से इन्कार कर रही थी उनके प्रति अब नरम रवैया अपना रही है। या तो पहले उसका रुख सही नहीं था या फिर अब?
यह कहना कठिन है कि मध्य प्रदेश सरकार ने कर्ज माफी की जगह ब्याज माफी की योजना लाने का जो आश्वासन दिया उससे नाराज किसान संतुष्ट होंगें? वे कर्ज माफी की अपनी मांग पर डटे रह सकते हैं-ठीक वैसे ही जैसे महाराष्ट्र के किसान डटे हुए हैं। महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को भरोसा दिया है कि वह अक्टूबर तक कर्ज माफी की योजना लेकर सामने आएगी। इस सबके बीच उत्तर प्रदेश सरकार इस तरह की योजना पर अमल का तरीका खोजने में लगी हुई है। यह तय है कि आने वाले दिनों में अन्य राज्य सरकारों पर भी यह दबाव होगा कि वे किसानों के कर्जे माफ करने की कोई योजना लाएं। इस दबाव से केंद्र सरकार अछूती नहीं रह सकती। पता नहीं केंद्र एवं राज्य सरकारें किसानों की कर्ज माफी की मांग का सामना कैसे करेंगी, लेकिन अच्छा होगा कि वे रिजर्व बैंक की इस चेतावनी को ध्यान में रखें कि किसानों के कर्ज माफ करने से वित्तीय घाटे के साथ महंगाई बढ़ने का भी खतरा है। हालांकि हमारे नीति-नियंता इससे अनभिज्ञ नहीं कि कर्ज माफी न तो किसानों के लिए लाभकारी साबित होती है और न ही अर्थव्यवस्था के लिए, फिर भी वे रह-रह कर इसी रास्ते पर चल निकलते हैं। कर्ज माफी की मांग से छुटकारा न मिलने का एक बड़ा कारण ऐसे उपाय न किए जाना है जिससे किसानों के सामने कर्ज लेने की नौैबत ही न आए। किसान जब तक खेती के नाम पर कर्ज लेने को मजबूर बना रहेगा तब तक उसकी हालत नहीं सुधरने वाली।
[ मुख्य संपादकीय ]