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दो संसदीय सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस-नेकां में गठजोड़ से नए समीकरण बनने लगे हैं, वर्तमान में दोनों सीटें पीडीपी के पास थीं, जो जीतेगा उसका पलड़ा भविष्य में चुनावों में भी भारी रहेगा
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जम्मू-कश्मीर में दो संसदीय सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के बीच गठजोड़ होने से नए राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब दोनों ही दल एक साथ मिलकर चुनाव लडऩे जा रहे हों। इससे पूर्व भी कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस राज्य की सभी छह संसदीय सीटों पर चुनाव लड़ चुकी हैं। यही नहीं, दोनों दलों के बीच गठबंधन की सरकारें भी रही है। वर्ष 2014 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़े तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। श्रीनगर और अनंतनाग की जिन दो संसदीय सीटों पर उपचुनाव होने हैं, वे दोनों ही सीटें सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के पास थीं। अनंतनाग सीट जहां मुख्यमंत्री के त्यागपत्र देने से खाली हुई है, वहीं श्रीनगर सीट तारीक हमीद करा के पीडीपी के साथ-साथ संसदीय सीट पर से भी त्यागपत्र देने के कारण रिक्त हुई है। इसीलिए दोनों ही सीटें सत्तारूढ़ पीडीपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई हैं। कांग्रेस-नेकां भलीभांति समझते हैं कि अगर इस उपचुनाव में पीडीपी की पराजय हुई तो उसके दूरगामी परिणाम होंगे। संसदीय उपचुनावों के बाद पंचायत और निकाय चुनाव भी होने हैं। निश्चित रूप से जो भी दल इन उपचुनावों में जीत दर्ज करेगा, उसका पलड़ा भविष्य में होने वाले चुनावों में भी भारी होने की संभावना बढ़ जाएगी। इस समय जम्मू संभाग की दोनों और लद्दाख की एकमात्र संसदीय सीट भाजपा के पास है। गठबंधन सरकार के इस दूसरे घटक दल भाजपा का कश्मीर में सीमित आधार है। इस कारण उसका चुनावों में कुछ भी दांव पर नहीं लगा है। पार्टी ने अभी यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि वह अकेले चुनाव लड़ेगी या फिर पीडीपी को अपना समर्थन देगी। मगर जिस प्रकार से कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने उपचुनावों में अपने दिग्गज उम्मीदवारों को उतारा है, उससे यह साफ है कि यह दल किसी भी कीमत पर चुनाव जीतकर भविष्य की राजनीति में अपनी पैठ भी बनाना चाहते हैं। दोनों ही सीटों के परिणाम भी बहुत रोचक होंगे। यह राज्य में न सिर्फ पंचायत व निकाय चुनावों को भी प्रभावित करेंगे बल्कि कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के रिश्तों को भी तय करेंगे। यही नहीं, पिछले वर्ष कश्मीर में ङ्क्षहसा का जो चक्र चला, उसने राजनीतिक दलों विशेषकर सत्तारूढ़ पीडीपी पर क्या प्रभाव डाला, इसका भी सहजता के साथ अनुमान लगाया जा सकेगा।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]