पिछले साढ़े तीन महीनों से कश्मीर में लगातार बंद और प्रदर्शनों के कारण लोगों का आजिज आना स्वभाविक है। विगत कुछ दिनों से जिस प्रकार से घाटी के विभिन्न भागों में अब हालात में सुधार हो रहा है, वे यह दर्शाता है कि लोग अलगाववादियों का समर्थन नहीं करते हैं। जबरन बंद करवा कर अलगाववादी यह संदेश देना चाहते हैं कि घाटी के लोग उनके साथ हैं और उनके द्वारा जारी कैलेंडर का अनुसरण कर रहे हैं। यह सर्वविदित है कि आतंकवादी कमांडर बुरहान वानी की आठ जुलाई को मुठभेड में हुई मौत के बाद से ही कश्मीर में बंद है। दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान व शैक्षिक संस्थान बंद होने से हर कोई परेशान है विशेषकर लाखों विद्यार्थी जिनका भविष्य दांव पर लगा है। विडंबना यह है कि चंद अलगाववादी जिन्होंने पूरे कश्मीर घाटी के माहौल को खराब करके रखा हुआ है, उनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो रही है। अच्छी बात यह है कि अब घाटी के लोग धीरे-धीरे समझ अलगाववादियों के मंसूबों को समझ रहे हैं और कुछ दिन से बंद का विरोध भी करने लगे हैं। यह सही है कि अलगाववादी भी इसे समझते हैं और तभी लोगों को धमकाने के लिए कभी स्कूलों, दुकानों को जलाते हैं तो कभी वाहनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। बावजूद इसके कश्मीर में हालात बदल रहे हैं और इसका असर भी साफ नजर आने लगा है। यह राज्य सरकार के लिए शुभ संकेत हैं। सरकार को चाहिए कि वह ताजा हालात को देखते हुए हुए बंद का विरोध करने वालों को सुरक्षा मुहैया करवाएं और यह प्रयास करें कि लोग खुलकर अलगाववादियों के सामने आएं ताकि सभी को उनकी असलियत का अनुमान हो सके। बीते सोमवार को कई स्कूली छात्राओं ने सड़कों पर आकर यह संदेश दिया है कि वे हर कीमत पर स्कूलों में जाना चाहती हैं। अब सरकार को कदम उठाने हैं और सर्वप्रथम स्कूल खोलने का प्रयास करना होगा। नागरिक सचिवालय कुछ दिनों के भीतर श्रीनगर में पहले से ही बंद होकर जम्मू में खुल रहा है। ऐसे में अगर सरकार कुछ सख्त कदम उठाकर कश्मीर में बंद स्कूलों को भी खुलवा लेती है तो इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। इस पर केंद्र व राज्य सरकार दोनों को गंभीरता से सोचने की जरूरत है।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]