पंजाब की नई सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ उचित कदम उठाती हुई दिख रही है, जिसके दूरगामी परिणाम सामने आने निश्चित हैं। प्रदेश सरकार परिवहन नीति में बदलाव करने जा रही है। निस्संदेह इसकी आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ जहां निजी बसों के कारण सड़कों पर अराजकता जैसी स्थिति उत्पन्न होती जा रही थी और आए दिन निजी बस चालकों, परिचालकों द्वारा यात्रियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आने लगी थीं, वहीं दूसरी तरफ निजी बसों के कारण सरकारी रोडवेज की स्थिति चरमरा गई थी। आज स्थिति यह है कि सरकारी रोडवेज बुरी तरह से घाटे में चल रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार द्वारा परिवहन नीति में परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के परिवार द्वारा संचालित निजी बस कंपनियों पर पड़ेगा, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ऐसा किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं, अपितु जनता और सरकारी रोडवेज की भलाई तथा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए ही कर रही है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि उनकी सरकार किसी के खिलाफ बदले की भावना से कार्य नहीं करेगी और अभी तक सरकार की तरफ से ऐसा कुछ किया भी नहीं गया है, जिससे संदेह की स्थिति उत्पन्न हो। इसलिए यह आवश्यक है कि इस मामले में किसी प्रकार की राजनीति न हो। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है कि परिवहन विभाग का कायाकल्प अत्यंत आवश्यक था। 22 डीटीओ व चार आरटीओ कार्यालयों के पुनर्गठन व परमिट अलॉट करने की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने जैसे सुझाव यही दर्शाते हैं कि सरकार इसे लेकर गंभीर है। वाहनों के पंजीकरण, लाइसेंस जारी करने व अन्य सेवाओं के नवीनीकरण के कार्यो में सतर्कता बरतने के निर्देश भी यही इंगित करते हैं कि सरकार की नीयत बिल्कुल साफ है। अब आवश्यकता इस बात की है कि सरकार नई नीति जल्द से जल्द बनाए और इसे लागू करे। साथ ही एक ऐसी निगरानी की व्यवस्था भी बनाई जानी चाहिए जो नई नीति के पालन की प्रक्रिया पर पैनी नजर रखे। कोई भी नीति तभी सफल साबित हो सकती है, जब उसे पूरी ईमानदारी के साथ धरातल पर लागू किया जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार की नई नीति तार्किक होगी और इससे सरकारी रोडवेज भी घाटे से उबर सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]