कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पद से हटा दिया। जिस तरह का दयनीय प्रदर्शन कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में रहा, उस परिप्रेक्ष्य में आलाकमान के इस फैसले पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी पराजय के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। लगभग डेढ़ महीने बाद कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पद से हटा दिया। हालांकि जिस तरह का दयनीय प्रदर्शन कांग्रेस का विधानसभा चुनाव में रहा, उस परिप्रेक्ष्य में आलाकमान के इस फैसले पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। उत्तराखंड के सोलह सालों के इतिहास में ये चौथे विधानसभा चुनाव थे लेकिन कांग्रेस को इस कदर बुरी स्थिति का सामना पहले कभी नहीं करना पड़ा। पार्टी के चुनावी प्रदर्शन का आंकलन इससे किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री स्वयं दो सीटों से चुनाव हार गए। प्रदेश अध्यक्ष और अधिकांश मंत्री भी अपनी सीटें बचाने में असफल रहे। इस स्थिति में यह तय समझा जा रहा था कि कांग्रेस नेतृत्व जल्द चुनाव में हार की जिम्मेदारी तय कर जरूरी कदम उठाएगा। हालांकि कांग्रेस चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्वयं हार की जिम्मेदारी अपने सिर ली मगर आलाकमान ने संगठन को भी नहीं बख्शा। दरअसल, चुनाव में हार तो पार्टी संगठन में नेतृत्व परिवर्तन का मुख्य कारण रहा ही, इसके साथ ही पिछले तीन सालों के दौरान उत्तराखंड में जिस तरह कांग्रेस में विघटन हुआ, उसके लिए भी प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल उठे। मार्च 2016 में जिस तरह एक पूर्व मुख्यमंत्री और दो पूर्व कैबिनेट मंत्रियों समेत नौ विधायकों ने अपनी ही सरकार को संकट में डालते हुए कांग्रेस से पल्ला झटक भाजपा का रुख किया, उससे कांग्रेस की खासी किरकिरी हुई। फिर अगले ही महीने एक और विधायक कांग्रेस छोड़ भाजपा में चली गईं। रही-सही कसर पूरी हो गई ऐन विधानसभा चुनाव से पहले, जब दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। तमाम दिग्गज एक के बाद एक, कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होते गए, लेकिन संगठन हालात संभालने में पूरी तरह नाकाम रहा। इसके अलावा, विधानसभा चुनाव से पहले सरकार व संगठन के बीच के रिश्ते जिस तरह से दिखे, उसने भी पार्टी की साख पर असर डाला। इन परिस्थितियों में विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों करारी शिकस्त कांग्रेस के लिए किसी सबक से कम नहीं रही। अब क्योंकि निकट भविष्य में राज्य में निकाय चुनाव होने हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी कम वक्त बचा है, कांग्रेस भविष्य की ओर देख रही है। नए अध्यक्ष के रूप में प्रीतम सिंह की ताजपोशी इसी रणनीति का पहला कदम माना जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]