लखनऊ में आइएस से कुप्रेरित स्वयंभू आतंकी संगठन के एक हथियारबंद सदस्य को मार गिराने में मिली सफलता उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए एक कामयाबी अवश्य है, लेकिन वह तब तक राहत की सांस नहीं ले सकती जब तक इस गुट से जुड़े सभी संदिग्ध आतंकी तत्वों को गिरफ्तार नहीं कर लिया जाता। पुलिस को इसकी तह तक भी जाना होगा कि इस आतंकी गुट के इरादे क्या थे और उनकी ओर से उज्जैन पैसेंजर में जो बम विस्फोट किया गया वह किसी बड़ी साजिश का हिस्सा था या फिर अपनी ताकत को परखने का जरिया? चूंकि यह दो राज्यों में सक्रिय आतंकी गुट का मामला है इसलिए यदि आगे की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपी जाती है तो उसे अपेक्षाओं पर खरा उतरने में तत्परता दिखानी होगी। अगर राष्ट्रीय जांच एजेंसी मध्य प्रदेश में शाजापुर के निकट ट्रेन में बम विस्फोट और साथ ही लखनऊ में आतंकी से मुठभेड़ के मामले को अपने हाथ लेती है तो इससे न तो मध्य प्रदेश पुलिस का काम समाप्त होने वाला है और न ही उत्तर प्रदेश पुलिस का। दोनों राज्यों की पुलिस को संदिग्ध आतंकियों की तलाश और निगरानी में और चुस्ती दिखानी होगी। सच तो यह है कि यह काम अन्य राज्यों की पुलिस और वहां की खुफिया एजेंसियों को भी करना होगा, क्योंकि आतंक के रास्ते पर जाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ रही है। पुलिस और खुफिया एजेंसियों की चुनौती इसलिए कहीं अधिक बढ़ गई है, क्योंकि अब इंटरनेट के जरिये ऐसे जिहादी तैयार हो रहे हैं जो खुद को दुनिया के सबसे बर्बर आतंकी संगठन का हिस्सा बनाना चाहते हैं।
यह कोई राहत की बात नहीं कि मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए चुनौती बना आतंकी गुट सीधे तौर पर आइएस से संचालित नहीं दिख रहा, क्योंकि इस खूंखार आतंकी संगठन के रास्ते पर ले जाने वाली तमाम सामग्र्री इंटरनेट पर मौैजूद है। इंटरनेट पर उपलब्ध जिहादी सामग्र्री बम और बारूद बनाना सिखाने से कहीं ज्यादा खतरनाक काम युवाओं के मन-मस्तिष्क को आतंकी विचारधारा से दूषित करने का कर रही है। चिंताजनक यह है कि अब बड़ी संख्या में पढ़े-लिखे युवा भी आतंक के रास्ते पर जा रहे हैं। यह स्थिति पुलिस एवं खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ समाज के लिए भी चिंता का विषय बननी चाहिए। यह ठीक है कि मुस्लिम धर्मगुरुओं और विभिन्न इस्लामी संगठनों की ओर से आइएस और इस जैसे अन्य आतंकी संगठनों के खिलाफ फतवा जारी किया गया है, लेकिन यह भी रेखांकित हो रहा है कि केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। समाज के स्तर पर और अधिक सक्रियता और सजगता दिखाने की जरूरत है। इस मामले में लखनऊ में पुलिस के हाथों मारे गए आतंकी सैफुल्ला के पिता सरताज ने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया। उन्होंने यह कहकर एक अद्भुत मिसाल पेश की कि जो देश के खिलाफ काम करे वह उनका बेटा नहीं हो सकता। उन्होंने बेटे का शव लेने से भी इन्कार कर दिया। यह दुखद है कि जब एक आम आदमी ने एक मिसाल पेश की तब हमारे कुछ राजनीतिक दल आतंकवाद के मामले में सस्ती और संकीर्ण राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

[ मुख्य संपादकीय ]