पूरा देश इस चुनौती का सामना कर रहा है। झारखंड भी। चुनौती है अफवाहों की। इसमें सबसे बड़ी भूमिका निभा रहा है सोशल मीडिया। संदेश ऐसे-ऐसे आते हैं कि तत्काल किसी के भी होश उड़ जाए। लोग इन संदेशों को बिना सोचे-समझे कई बार आगे भी बढ़ा देते हैं और बातों का बवंडर खड़ा हो जाता है। एक बार हंगामा शुरू हो गया तो रोकना मुश्किल। कई इलाकों में अब पुलिस तो इंटरनेट नेटवर्क को ही ध्वस्त कर दे रही है लेकिन इससे भी कहीं अहम में आत्मअनुशासन। अन्यथा कोई भी कभी भी फंस सकता है। सैकड़ों उदाहरण हैं।
अभी कुछ दिनों पूर्व कोल्हान में जिस प्रकार बच्चा चोरी की अफवाह फैली उससे तो इतना समझा ही जा सकता है कि इसके पीछे भोले-भाले ग्रामीण कम से कम नहीं ही होंगे। राजधानी रांची के बडग़ाईं और कांके के सुकुरहुट्टू में तनाव भी कुछ ऐसे ही फैला। लोग एक-दूसरे को सोशल मीडिया से मिले संदेशों को भेजते रहे और भय से लेकर आक्रोश का वातावरण बनता गया। शांत करने में मशक्कत तो करनी ही पड़ी। अब समझदारी से काम लेने का वक्त आ रहा है। प्रशासनिक स्तर से पहल शुरू हुई है। हर जिले में वरीय अधिकारी सोशल मीडिया से जारी अफवाहों को नियंत्रित करने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। पुलिस के वरीय अधिकारियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारी भी इस मशक्कत में जुटे हुए हैं। रांची में तो बकायदा एसडीओ ने विज्ञापन जारी कर ऐसे संदेशों पर कार्रवाई करने की बात कही है। लोगों को सावधानी बरतनी होगी। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब किसी अनजाने संदेश के कारण आपको जेल का रास्ता देखना पड़े। अभी देश में चल रहे कई कथित आंदोलनों के पीछे भी ऐसी ही अफवाहें शुरू हो गई हैं। छोटे-छोटे शहरों में मजाक से शुरू होकर हवा का रुख गर्म होने में तो कुछ ही वक्त लगता है। आम आदमी बचता वहीं है जहां वह परिपक्व होता है। इन अफवाहों का सर्वाधिक शिकार युवा हो रहे हैं और जरूरत इन्हीं युवाओं को बचाने की है। कुछ लोग भ्रामक सूचनाओं के बूते युवाओं को मूल लक्ष्य से भटकाने में सफल हो रहे हैं। सरकार के समक्ष ऐसे ही युवाओं के लिए बेहतर माहौल बनाने की चुनौती है। इसके लिए तंत्र को मुस्तैदी के साथ जुटना होगा और उन लोगों की पहचान करनी होगी जो सामाजिक समरसता में बाधक बन रहे हैं। समाज सिर्फ जागरूक हो जाए तो परेशानी स्वत: कम हो जाएगी।
----
हाइलाइटर
कुछ लोग भ्रामक सूचनाओं से युवाओं को दिगभ्रमित कर दे रहें हैं। सरकार को मुस्तैदी के साथ ऐसे लोगों की पहचान करनी होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]