सत्ता बदली पर खनन माफिया के तेवर ढीले नहीं पड़े। अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि किस तरह राज्य से खनन माफिया का खात्मा हो।
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राज्य में भले ही सत्ता बदल गई, लेकिन खनन माफिया के तेवर अभी भी वैसे ही हैं। राज्य सरकार के लिए खनन माफिया के वर्चस्व को खत्म करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। हालांकि, नई सरकार ने खनन पर भी जीरो टोलरेंस की बात कही है और रामनगर में वनकर्मी को कुचलने के मामले में तेजी से कार्रवाई कर माफिया को एक संदेश देने की कोशिश भी की है, इसके बावजूद माफिया के तेवर क्या गुल खिलाएंगे यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। राज्य के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी सत्ता परिवर्तन हुआ और वहां नजारा अलग है। राज्य की सरकार के पास भी वैसा ही असर दिखाने का मौका भी है और चुनौती भी। राज्य गठन के बाद से अब तक राज्य के मैदानी और तराई क्षेत्र में खनन माफिया अकसर दुस्साहस का परिचय देता रहा है। माफिया ने छोटे कर्मियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों तक पर हमले किए, बंधक बनाया और खनन का खेल जारी रहा। तमाम गैर सरकारी संस्थाओं के विरोध के बावजूद खनन माफिया को अभी तक कोई भी सरकार रोक नहीं पाई। सफेदपोश की सरपरस्ती के आरोप भी लगते रहे हैं और ऐसा दिखाई भी देता रहा है, लेकिन न तो माफिया और न सफेदपोश कभी सामने आ पाए। ताजा प्रकरण में भी यह आरोप लगे कि असल मुजरिम तक सरकार की पहुंच नहीं है। सफेदपोश के दबाव के कारण ही अधिकारी भी कार्रवाई से बचते हैं। राज्य की सत्ता संभालते ही माफिया की इस दुस्साहसिक हरकत के बाद यह चुनौती सरकार के लिए और भी बड़ी हो जाती है कि सरकार खनन माफिया और सफेदपोशों के गठजोड़ को खत्म करे और खनन में चल रहे खूनी खेल पर रोक लगे। सरकार ने दावा किया है कि खनन की मजबूत नीति तैयार की जाएगी और माफियाराज को समाप्त किया जाएगा। यह नीति कितने समय में अस्तित्व में आएगी और कितनी प्रभावी होगी, यह देखना भी जरूरी होगा। फिलहाल सरकार की मंशा तो उम्मीद जगाती है, लेकिन सुस्त चाल से लिए जा रहे फैसले कहीं न कहीं आम आदमी के मन में आशंका भी पैदा कर रहे हैं। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में जिस तरह से नई सरकार ने कड़े कदम उठाए और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर कार्रवाई की, उसके बाद राज्य की सरकार पर यह दबाव भी है और तुलना भी की जा रही है। विधानसभा का पहला सत्र चल रहा है और इसमें खनन को लेकर काफी शोर भी मच चुका है। विपक्ष भी खनन के मामले पर सरकार के लिए चुनौती खड़ी कर रहा है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]