यह अच्छा हुआ कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर खीझ उतारने में लगे अरविंद केजरीवाल, मायावती और अन्य अनेक नेताओं को चुनाव आयोग ने यह खुली चुनौती दी कि वे इस मशीन में छेडछाड़ करके दिखाएं। इस चुनौती को वे भी स्वीकार कर सकते हैं जो खुद को तकनीक का जानकार बताते हुए ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह जताते रहते हैं। केजरीवाल को यह चुनौती अवश्य स्वीकार करनी चाहिए जो बेतुके बयान देने के साथ ही यह दावा करने में लगे हुए हैं कि यदि उन्हें ईवीएम मिल जाए तो वह दिखा देंगे कि उसमें छेड़छाड़ की जा सकती है। फिलहाल यह कहना कठिन है कि ईवीएम विरोध में राग अलाप रहे नेता चुनाव आयोग की चुनौती स्वीकार करते हैं या नहीं, लेकिन यह देखना दयनीय रहा कि इस मशीन में छेड़छाड़ किए जाने की शिकायत के साथ जो नेता राष्ट्रपति के पास पहुंचे उनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे। कम से कम उन्हें तो ईवीएम विरोधी मोर्चे में शामिल होने से बचना चाहिए था। इसलिए और भी, क्योंकि वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और उनके सहयोगी रहे वीरप्पा मोइली का साफ तौर पर यह कहना है कि कांग्र्रेस की पराजय का कारण ईवीएम नहीं है। ईवीएम के बारे में वीरप्पा मोइली का बयान अन्य कांग्रेसी नेताओं को शर्मिंदा करने के साथ ही उनकी पोल खोलने वाला भी है। नि:संदेह आम जनता के लिए यह समझना कठिन है कि पंजाब में जीत हासिल करने और गोवा एवं मणिपुर में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने वाली पार्टी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर कैसे फोड़ सकती है? इस मामले में अन्य नेताओं का रोना-धोना भी किस तरह जनता के गले नहीं उतर रहा, इसका एक अन्य प्रमाण बसपा के ईवीएम विरोधी दिवस में लोगों की मामूली उपस्थिति से मिला।
यह पहली बार नहीं जब चुनाव आयोग ने ईवीएम में छेड़छाड़ करके दिखाने की चुनौती दी हो। उसने ऐसी ही चुनौती 2009 में भी दी थी और तब कोई कुछ साबित नहीं कर पाया था। कई उच्च न्यायालय भी तकनीकी विशेषज्ञों से ईवीएम का परीक्षण करा चुके हैं। बिना किसी ठोस प्रमाण ईवीएम पर संदेह जताने वाले नेता यही साबित कर रहे हैं कि उन्हें उसी जनता को बरगलाने से परहेज नहीं जिनके जरिये उनकी राजनीति चलती है। ईवीएम में छेड़छाड़ को मुद्दा बनाने वाले किसी तकनीक नहीं, बल्कि एक तरह से जनता पर अविश्वास जता रहे हैं। आखिर कांग्र्रेस, बसपा और आम आदमी पार्टी अतीत की अपनी चुनावी जीत को कैसे भूल गए? इससे बुरी बात और कोई नहीं कि नेताओं ने संकीर्ण इरादों के साथ ईवीएम पर निशाना साधते हुए चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा से भी खेलने की कोशिश की। वे इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि दुनिया भर में चुनाव आयोग की प्रतिष्ठा की एक वजह ईवीएम भी है। जो नेता ईवीएम की जगह मतपत्र से चुनाव कराने की मांग कर रहे वे इससे अपरिचित नहीं कि इस प्रक्रिया में किस तरह बड़े पैमाने पर धांधली होती थी। मतपत्र से चुनाव कराने की मांग देश को एक तरह से बैलगाड़ी वाले युग में ले जाने की जिद है। यह जिद राजनीति के नाम पर की जाने वाली शरारत ही है।

[ मुख्य संपादकीय ]