पंजाब विधानसभा के इतिहास में वीरवार को वह हुआ जो कभी नहीं हुआ था। विधानसभा अखाड़ा बन गई। कुछ विधायकों की पगड़ियां उछल गईं तो कुछ महिला विधायकों की चुन्नियां खिंच गईं। दो विधायक मूर्छित हो गए। माननीयों के सदन में मर्यादाएं तार-तार होना अत्यंत दुखद व चिंतनीय है जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है। पिछले दो दिनों से जो कुछ भी सदन या विधानसभा में हुआ उससे आमजन में यह सवाल पैदा होना स्वाभाविक है कि जिस जगह सूबे को चलाने के नियम-कानून, नीतियां बनती हैं, वहां यह क्या हो रहा है?

एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते, अमर्यादित आचरण करते, सदन के नियमों को रौंदते क्या यह वही सम्मानित जन हैं जिन्हें सूबे के विकास व भलाई के लिए मंथन करने, योजनाएं बनाने व नियम-कानून तय करने का जिम्मा चुनावों के दौरान सौंपा जाता है। वीरवार को पंजाब के सदन में जो कुछ भी हुआ उसे पूरे पंजाब ने ही नहीं बल्कि देश ने देखा होगा। विपक्ष व सत्ता पक्ष दोनों को सोचना होगा कि क्या ऐसी घटना शोभा देती है? क्या इससे वाकई कोई राजनीतिक हित पूरा होने वाला है?

क्या इससे राज्य के लोगों का कोई कल्याण होगा? ऐसा लगता है कि सदन के भीतर व बाहर संयम की कमी रही। सर्वविदित है कि सदन की कार्यवाही नियमानुसार चलती है और इन्हीं के तहत कोई सदस्य कोई मामला या मुद्दा उठा सकते हैं। सदन से निलंबित अध्यक्ष का अधिकार है लेकिन उन्हें भी नियमों का पालन करते हुए यह सब करना पड़ता है। अगर किसी सदस्य को ऐसा प्रतीत होता है कि उसका निलंबन गलत है या सियासी वजह से हुआ है तो उसे सही तरीके से इसे उठाना चाहिए। ऐसी नौबत नहीं लानी चाहिए कि पूरा माहौल ही खराब हो जाए। दुर्भाग्यवश ऐसा ही हुआ। आम तौर पर एक-दूसरे की धुर विरोधी दोनों विपक्षी पार्टियां मौके की नजाकत में सियासी अवसर भी तालाशती हुईं एकजुट हो गईं।

इस तनावपूर्ण माहौल में सदन की कार्यवाही कैसे सुचारू व स्वस्थ तरीके से चल सकेगी, यह बड़ा सवाल है।और अगर कार्यवाही नहीं चलने दी जाती है तो इससे कई आवश्यक बिल, प्रस्ताव व चर्चाएं रुक सकती हैं जिसका सीधा-सीधा असर राज्य के विकास पर पड़ेगा। दोनों पक्षों को सुनिश्चित करना चाहिए कि कम से कम सदन की कार्यवाही बाधित न हो और उससे भी बड़ी बात यह कि हंगामे ऐसे न हों कि सदन सिसकता सा नजर आए।

[पंजाब संपादकीय]