फ्लैश--
राज्य सरकार सबको बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए की नई-नई नीतियां बनाती हैं, फिर भी अस्पतालों में आएदिन मरीजों के इलाज में लापरवाही देखने को मिलती है।
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सरकारी अस्पतालों की स्थापना इस उद्देश्य से की गई है कि वहां अमीर-गरीब और जाति-मजहब की खाई नहीं दिखेगी। हर जरूरतमंद को एकसमान इलाज की सुविधाएं मिलेंगी। सरकार की कोशिश यह रहेगी कि जांच और समुचित इलाज मुफ्त में हो। डॉक्टरी की पढ़ाई के बाद डिग्री लेते वक्त छात्रों को यह शपथ दिलाई जाती है कि उन्होंने जिस सेवा को चुना है वह कतई व्यवसाय न बने। सरकारी अस्पतालों में सेवारत होने पर उन्हें सबसे पहले मरीजों का इलाज करना है। हालांकि, हकीकत इससे उलट है। अब सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों का सेवा भाव नहीं दिखता, निजी अस्पताल मरीज को दुधारू गाय समझते हैं इसलिए वे हर सेवा पैसे लेकर देने में तत्पर रहते हैं। बीते शुक्रवार को राजधानी पटना में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लचर होने का ऐसा उदाहरण देखने को मिला, जिसने शासन को भी झकझोर दिया। इसे घोर लापरवाही ही कहेंगे कि सांस लेने में गंभीर दिक्कत झेल रही स्वतंत्रता सेनानी की विधवा को उसके परिजन गया से लादकर पटना में आइजीआइसी (इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी)लाए जहां तमाम अनुनय-विनय के बाद उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया है कि बेड खाली नहीं हैं। सलाह दी गई है कि मरीज को आइजीआइएमएस (इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान)ले जाएं, वहां भी यह दिक्कत परिजनों ने झेली। दरअसल विडंबना यह है कि सूबे में सिर्फ पटना स्थित आइजीआइसी व आइजीआइएमएस ही दो ऐसे अस्पताल हैं जहां ह्रदय रोगों के इलाज की समुचित सुविधाएं हैं, शेष मेडिकल कॉलेज तेजी से बढ़ रहे इस रोग के समुचित उपचार में सक्षम नहीं हैं। लिहाजा दूर-दराज से रेफर होने के बाद अपने बूते मरीज को लादकर पटना लाने पर परिजनों को डॉक्टरों की ओर से टका सा जवाब मिले तो रोगी की आधी जान तो ऐसे ही निकल जाती है। दौलती देवी तो इसलिए बच गईं क्योंकि उनके परिजन पैसे वाले थे जो दोनों अस्पतालों से दुत्कार मिलने पर उन्हें फौरन लेकर एक बड़े निजी हॉस्पिटल पहुंच गए। मीडिया में हो-हल्ला होने पर उच्चस्तरीय तंत्र भी इसलिए जग गया क्योंकि चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह की गूंज अभी सरकार के नुमाइंदों के कानों में हो रही है। यही वजह है कि आनन-फानन दौलती देवी को निजी हॉस्पिटल से शिफ्ट कराकर आइजीआइसी ले जाया गया जहां उनके समुचित इलाज का दावा किया जा रहा है। खैर, अच्छी बात ये है कि स्वतंत्रता सेनानी परमेश्वर सिंह की विधवा के इलाज में लापरवाही के प्रकाश में आने पर स्वास्थ्य निदेशक ने मेडिकल कॉलेजों के प्राचार्यो, अधीक्षकों, चिकित्सा संस्थानों के निदेशक एवं सिविल सर्जनों को हिदायत के साथ यह निर्देश दिया है कि स्वतंत्रता सेनानियों एवं उनके आश्रितों का उच्च प्राथमिकता के आधार पर अस्पतालों में मुफ्त इलाज किया जाए। लापरवाही पर कॉलेजों के प्राचार्य, अधीक्षक, संस्थानों के निदेशक और सिविल सर्जन जिम्मेदार होंगे। उम्मीद की जाती है कि अब सरकारी अस्पतालों में कम से कम आजादी के सिपाहियों और उनके परिजनों का अनादर नहीं होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]