का बरसा जब कृषि सुखानी-इस कहावत में खेतीबाड़ी और किसान की दशा-दिशा का पूरा जीवन दर्शन छिपा है। किसानों के साथ आज तक यही होता आया है लेकिन, अब शायद हालात बदलने वाले हैं। पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तो नीति आयोग की बैठक में सैद्धांतिक रूप से तय हो गया है और कार्ययोजना भी तैयार हो चुकी है। अब इस लक्ष्य को हासिल करने का दारोमदार राज्यों पर है। होता यह है कि किसान को जब किसी चीज की वास्तविक रूप से जरूरत होती है, वह तब उसे प्राप्त नहीं होती। ऐसा दशकों से होता आया लिहाजा, आज अन्नदाता ही पाई-पाई के लिए मोहताज है। वह अपनी उपज की लागत भी नहीं निकाल पा रहा है। मेहनतकश और खुद्दार किसान याचक की मुद्रा में सरकारों की ओर देखता रहता है। अब अगर किसानों की स्थिति बदलने को केंद्र ने जोर लगाया है तो प्रदेश सरकार भी कमर कस चुकी है। पहले किसानों का ऋण माफ किया, अब उपज बढ़ाने और कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने पर काफी जोर दिया जा रहा है। फसलों की खरीद में बिचौलियों को हटाने का प्रयास किया जा रहा है। किसान सहजता से उपज बेच सकें और समय से भुगतान प्राप्त करें, इसकी व्यवस्था की जा रही है। किसानों को नए कृषि शोध का लाभ मिले, इस पर भी सरकार ध्यान दे रही है। इसीलिए प्रदेश सरकार 20 नए कृषि विज्ञान केंद्र खोलने के लिए केंद्र से वार्ता कर रही है। मौजूदा समय में इनकी संख्या 69 है। फिलहाल यदि किसानों को आर्थिक रूप से खुशहाल बनाना है तो उनकी समस्याओं पर चौतरफा ध्यान देना होगा। खाद, बीज, सिंचाई, कृषि बीमा, उचित मूल्य, समय से भुगतान, खरीद की पारदर्शी व्यवस्था, ऋण की सहूलियत आदि पर ध्यान देना होगा। यह देखना होगा कि क्यों आलू किसान अपनी फसल सड़क पर फेंक जाते हैं। किसानों की दुर्गति की बातें और उन्हें दूर करने के वादे बहुत पुराने हैं। उत्तर प्रदेश सरकार से इस क्षेत्र में कुछ ठोस करने की उम्मीद फिलहाल रखनी चाहिए क्योंकि अभी किसानों की हितकारी योजनाओं के लिए समयबद्ध लक्ष्य तय किए जा रहे हैं। इन्हीं में एक है बुंदेलखंड में तीस जून तक तालाब खोदवाने का।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]