राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा करके भाजपा ने अनिश्चितता खत्म करने के साथ ही विपक्षी दलों के सामने यह मुश्किल भी खड़ी कर दी है कि वे उनका विरोध कैसे करें? विपक्ष की मुश्किल इसलिए और बढ़ गई है कि एक तो रामनाथ कोविंद दलित समुदाय से हैं और दूसरे साफ-सुथरी छवि रखते हैं। दलगत राजनीति का हिस्सा रहने के बावजूद वह सदैव विवाद से बचे रहे हैं। यह भी उनके पक्ष में जाता है कि वह राष्ट्रपति पद के लिए आवश्यक योग्यता से पूरी तरह लैस हैं। कानूनी एवं संवैधानिक मामलों के जानकार होने के साथ ही वह दलित हितों के लिए कार्य करने वाले सौम्य-सरल नेता के तौर पर भी जाने जाते हैं। इस सबके अतिरिक्त उन्हें उन सब मसलों का भी खासा अनुभव है जो आज की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीति में महत्व रखते हैं। यह सही है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की पृष्ठभूमि वाले नेता हैं, लेकिन विपक्षी दल केवल इसके आधार पर उनके विरोध को सही नहीं ठहरा सकते। इसलिए और नहीं, क्योंकि अतीत में खुद उनकी ओर से दलगत राजनीति का हिस्सा रहे और यहां तक कि दलीय राजनीति में सक्रिय नेताओं को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया गया है। सभी इससे परिचित हैं कि वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उसके पहले प्रतिभा पाटिल कांग्र्रेस के नेता के तौर पर सक्रिय थे। जो विपक्षी दल यह तर्क दे रहे हैं कि भाजपा को उनका समर्थन पाने के लिए गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाना चाहिए था वे शायद यह भूल रहे हैं कि जब वाजपेयी सरकार के समय एपीजे अब्दुल कलाम को इस पद का प्रत्याशी बनाया गया था तब उन्होंने उनका विरोध किया था।
इस पर आश्चर्य नहीं कि सभी विपक्षी दल न सही, कुछ और विशेष रूप से वामपंथी दल राष्ट्रपति का अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला करें। इसमें कोई हर्ज भी नहीं। आखिर विपक्ष में रहते समय भाजपा भी ऐसा ही करती रही है। हालांकि भाजपा इससे उत्साहित होगी कि कई विपक्षी दलों ने रामनाथ कोविंद को समर्थन देने की घोषणा करके उसका काम आसान कर दिया है, लेकिन शिवसेना का अलग राग उसके लिए किसी सिरदर्द से कम नहीं। शिवसेना राजग का घटक होने और यहां तक कि महाराष्ट्र एवं केंद्र सरकार में साझीदार होने के बावजूद विपक्षी दल सरीखा व्यवहार कर रही है। हालांकि उसने पहले भी राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा से अलग राह पकड़ी है, लेकिन यह साफ है कि फिलहाल वह केवल भाजपा से अलग दिखने के बहाने रामनाथ कोविंद के नाम का विरोध कर रही है। ऐसा ही रुख कुछ विपक्षी दल भी अपना सकते हैं। जो भी हो, राष्ट्रपति के प्रत्याशी के रूप में रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाकर भाजपा ने फिर से यह स्पष्ट किया कि समाज के सभी वर्गों और खासकर दलित समाज को साथ लेकर चलना उसके एजेंडे का अहम हिस्सा है। इसी के साथ उसने यह भी साफ कर दिया है कि वह अपनी विचारधारा को लेकर कहीं कोई संकोच दिखाने या समझौता करने के लिए तैयार नहीं है।

[ मुख्य संपादकीय ]