पश्चिम बंगाल में सेंधमारी की सियासत को लेकर एक बार फिर राजनीति गर्म हो गई है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस एक के बाद एक कांग्रेस व वाममोर्चा की कब्जे वाली नगरपालिकाओं पर कब्जा करने के बाद जिला परिषद व पंचायत समिति में सेंधमारी शुरू कर दी है। कांग्रेस का दुर्ग कहे जाने वाली मालदा जिला परिषद पर सबेरे कब्जा किया तो शाम होते-होते जलपाईगुड़ी जिला परिषद पर भी कब्जा जमा लिया। चुनाव में जीत नहीं मिली तो अब कांग्र्रेस व वाममोर्चा के जिला परिषद सदस्यों को अपने पाले में खींच कर दोनों जिला परिषद पर कब्जा जमा लिया। मुर्शिदाबाद जिला परिषद के भी कांग्रेस व वाममोर्चा के 12 सदस्य तृणमूल में पहले ही शामिल हो चुके हैं और आने वाले कुछ दिनों में यह जिला परिषद भी कांग्र्रेस के हाथों से निकलने के पूरे आसार बन चुके हैं। आखिर कांग्रेस व वाममोर्चा में यह टूट क्यों हो रही है? तृणमूल एक के बाद एक नगर पालिकाओं पर कब्जा जमाने के बाद जिला परिषद व पंचायत समितियों पर नजर क्यों टिका रही है? इन सवालों का सपाट जवाब यह है कि आगामी वर्ष के अंत व 2018 की शुरूआत में पंचायत चुनाव होना है। इससे पहले तृणमूल अपना जनाधार को मजबूत करने की जुगत तेज कर दी है। मुर्शिदाबाद और मालदा ऐसे जिला हैं जहां वाममोर्चा के साथ-साथ तृणमूल को भी अधिक जगह नहीं मिल सकी थी। इसीलिए अब सेंधमारी की सियासत के जरिए तृणमूल कांग्रेस व वाममोर्चा की बची हुई शक्ति को भी खत्म करने की रणनीति पर कार्य कर रही है। इसमें काफी हद तक तृणमूल सफल हो चुकी है। ऐसा लग रहा है कि जिस रफ्तार से कांग्रेस व वाममोर्चा में टूट हो रही है उससे आने वाले समय में बंगाल से विरोधी दलों का नाम लेने वाला भी शायद ही बचे। वाममोर्चा की शक्ति पहले ही समाप्त हो चुकी है और अभी तीसरे स्थान पर है। वहीं कांग्रेस दशकों के बाद पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बन कर उभरी है। पर, तृणमूल कांग्रेस को झटके पर झटका देती जा रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मानस भुइयां पहले से ही लोकलेखा समिति के अध्यक्ष बन कर पार्टी के खिलाफ बगावत कर रखे हैं। इसके बाद एक विधायक तृणमूल में शामिल हो चुके हैं। कांग्र्रेस-माकपा चाहे जो भी कहे कि तृणमूल प्रलोभन व धमकी देकर उनके पार्टी सदस्यों को तोड़ रही है। पर, पार्टी में सांगठनिक एकजुटता नाम की कोई चीज भी होती है जिसके सहारे पूरा संगठन संचालित होता है। कहीं न कहीं कांग्रेस या फिर माकपा के सांगठनिक स्तर पर एकजुटता का अभाव दिख रहा है जिसके चलते एक-एक कर उनके जनप्रतिनिधि पार्टी छोड़ रहे हैं। वहीं तृणमूल को भी विचार करना होगा कि यदि वह इसी तरह विरोधी दल को तोड़ती रही तो स्थिति भयावह हो जाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]