हरियाणा की बेटियों ने एक बार फिर कुश्ती में देश की चमक पूरी दुनिया में बिखेर दी। तीन-तीन बेटियों ने एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में पदक जीतकर साबित कर दिया कि बेटियों की उड़ान को कोई थाम नहीं सकता। यह अच्छी खबर उस समय आई है जब प्रदेश सोनीपत की बेटी से हुई हैवानियत पर आंसू बहा रहा था। प्रदेश की बेटियां निरंतर हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। खेलों में तो हमारी बेटियों का कोई सानी नहीं है। लगातार पिछड़ने के बावजूद अभी भी पुरूष समाज की मानसिकता में बदलाव नहीं आ पाया है। कई बार उसका अहंकार उस पर इस तरह से हावी हो जाता है कि रोहतक जैसे जघन्य कांड हो जाते हैं। इस सामाजिक सोच को बदले बिना हालात में सुधार की उम्मीद करना ही बेमानी है। ‘बेटी बचाओ व बेटी पढ़ाओ’ के नारे के साथ-साथ यह भी आवश्यक हो गया है कि हम अपने बेटों को भी सही संस्कार व शिक्षा दें। उन्हें महिलाओं के साथ काम करने के तौर-तरीके सिखाने होंगे। बेटी के सशक्तीकरण की राह बेटों की बेहतर शिक्षा व संस्कार से जुड़ी है। ऐसे में शिक्षण संस्थाओं व अभिभावकों पर बदलाव लाने की जिम्मेवारी है। स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव कर शिक्षा के साथ-साथ संस्कार पर भी तवज्जो देने की आवश्यकता है। बेटियों में आगे बढ़ने का जज्बा है और हर चुनौती से लड़ने की क्षमता भी। आवश्यक है कि हम उन्हें दौड़ने के लिए समतल मैदान दें। शिक्षा का दायरा मजबूत कर समाज में यह बदलाव और तेज किया जा सकता है। इस बदलाव की राह में तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है न्यायिक प्रक्रिया में सुधार। ऐसे मामलों में तीव्र सुनवाई कर आपराधिक मानसिकता पर चोट की जा सकती है। प्रदेश भर में महिला थानों व त्वरित अदालतों का गठन किया गया है। यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि महिलाओं विरुद्र्ध ंहसा से जुड़े मामले त्वरित अदालतों में जाएं और आरोपियों को तुरंत कड़ी सजा मिले। समाज का अनुशासन व न्यायपालिका का दंड साथ-साथ चले तभी बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। चूंकि सरकार इस मसले पर गंभीर है, ऐसे में बेटियों का सम्मान बहाल होगा, ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]