हाइलाइटर
स्कूलों में बुक बैैंक इस दिशा में सराहनीय कदम है। यह बुक बैैंक तभी सफल हो पाएंगे जब अभिभावक इसमें रुचि दिखाएंगे।

कुछ छोटे फैसले बड़ा बदलाव ला सकते हैैं। कैप्टन सरकार का एक फैसला ऐसा ही है। वह है सरकारी स्कूलों में बुक बैैंक खोलने का। लाल बत्ती को अलविदा कहने, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने, नशे के खात्मे जैसे फैसले बेशक ज्यादा चर्चा में आते हैैं लेकिन इनके साथ-साथ अगर चिंता अगर पर्यावरण या संस्कृति को बचाने और लोगों में मितव्ययिता को बढ़ावा देने की भी हो तो यह अच्छी बात है। शिक्षा मंत्री अरुणा चौधरी ने स्कूलों को निर्देश दिए हैैं कि सरकारी स्कूलों में बुक बैैंक खोले जाएं। अब स्कूलों की बारी है कि वे इस पुनीत कार्य के प्रति संजीदगी, गंभीरता दिखाएं। ऐसे आयोजन, उपक्रम इच्छाशक्ति से ही सफल हो पाते हैैं। बुक बैैंक्स की स्थापना से केवल गरीब बच्चे ही लाभान्वित नहीं होंगे बल्कि इसका लाभ कोई भी उठा सकता है। दरअसल हमारे यहां यह माना जाता है कि पुरानी किताबें वे ही पढ़ते हैैं जो नई का खर्च वहन नहीं कर पाते। इस मानसिकता से हर साल न जाने कितने टन किताबें बेकार कर दी जाती हैैं, कबाड़ बना दी जाती हैैं। इसका प्रभाव यह होता है कि हर साल, खासकर स्कूली पाठ्यक्रमों की किताबों की कमी सामने आने लगी है। यही नहीं, इसका दूरगामी प्रभाव पर्यावरण पर पड़ रहा है। कागज के लिए हर साल हजारों-लाखों पेड़ों की बलि लेनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में किताबों को सहेजने और उन्हें साझा करने अथवा पुरानी किताबों का इस्तेमाल करने से इस समस्या को कम किया जा सकता है। किताबें तो किताबें हैैं, वह सेकेंड हैैंड या पुरानी नहीं होतीं। विदेशों में लोग, खासकर स्कूल-कालेजों के विद्यार्थी पुरानी किताबें को ही तरजीह देते हैैं। विदेशों की तर्ज पर हमारे देश में भी कई शहरों में बुक स्टोर्स में पुरानी किताबें मिलती है। लोग लेते भी हैैं लेकिन बहुत कम। इस चलन को और बढ़ाने की जरूरत है। स्कूलों में बुक बैैंक इस दिशा में सराहनीय कदम है। यह बुक बैैंक तभी सफल हो पाएंगे जब अभिभावक इसमें रुचि दिखाएंगे। बच्चों की पुरानी किताबों को इन बुक बैैंक्स में देना होगा। कबाड़ में देने के बजाय उसे दूसरे बच्चों के हाथों तक पहुंचाना कितना बेहतर होगा, यह कल्पना की जा सकती है। यही नहीं, बच्चों में यह मानसिकता भी विकसित करनी होगी कि पुरानी किताबें पढऩे में कोई बुराई नहीं बल्कि फायदा ही है। कुलमिलाकर एक संस्कृति का निर्माण व विकास करना होगा। इसके लिए कई संस्थान व स्वयंसेवी संस्थाएं पहले ही कार्यरत हैैं। उनके व सरकार के साथ अन्य संस्थाओं को भी आगे आना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]