पिछले साल 5 अप्रैल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की तो इस फैसले से असहमत लोगों ने हर स्तर पर इसका जमकर विरोध किया, वहीं फैसले के पक्षधर लोगों की भी धारणा थी कि इसका लागू हो पाना कठिन है। सशक्त शराब लॉबी ने हर संभव तरीके से इस फैसले का विरोध किया, इसके क्रियान्वयन की राह में कांटे बिछाए, हर स्तर के कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बावजूद राज्य में अच्छे नतीजों और संकेतों के साथ पूर्ण शराबबंदी ने एक साल पूरा कर लिया। इसके पिछले साल भर के सफर पर नजर डालें तो इसका संदेश स्पष्ट है, विषय जन आकांक्षा के अनुरूप हो तथा इसके पीछे दृढ़ एवं ईमानदार राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असंभव नहीं। राज्य में घर के आंगन से लेकर चौक-चौराहे तक लड़ाई-झगड़े कम हुए हैं, मुख्यमंत्री का दावा है कि शराबमुक्त हुए लोगों की सेहत और खुशहाली वापस आ गई है। नशाजन्य अपराधों में गिरावट आई है। बिहार की शराबबंदी की पूरे देश में न सिर्फ चर्चा है बल्कि कई अन्य राज्यों में बिहार के तर्ज पर शराबबंदी लागू करने की मांग उठ रही है। शराबबंदी की सफलता गाथा का एक संदेश खुद बिहार के लिए भी है कि हमारी तमाम समस्याएं इसलिए बरकरार हैं क्योंकि उनके समाधान के लिए अपेक्षित राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है। प्राथमिक से लेकर डिग्री कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षा व्यवस्था की बदहाली ऐसा ही चुनौतीपूर्ण मोर्चा है जिसे राजनीतिक इछाशक्ति के बूते फतेह किया जा सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी श्रेष्ठता सूची में बिहार के किसी भी शिक्षण संस्थान को सम्मानजनक दर्जा न मिलना लज्जाजनक है। जिस राज्य की प्राचीन पहचान विश्व स्तरीय गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था के लिए थी, जो राज्य अपने नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था पर गर्व करता है, जिस राज्य ने दुनिया को उच्च कोटि के गणितज्ञ व अन्य विद्वान दिए, उसी राज्य का एक भी शिक्षण संस्थान देश के श्रेष्ठ संस्थानों की सूची में स्थान नहीं पाता। राज्य को इस लज्जा से मुक्ति दिलाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को वैसी ही इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए, जैसी शराबबंदी के लिए दिखाई गई। बिहार को यदि उसके गौरव-काल में वापस ले जाना है तो इसका एकमात्र उपाय शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली है। यदि बिहार के कॉलेज-विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा दे पाने में असमर्थ हैं तो भला कौन मेधावी उच्च शिक्षा के लिए बिहार में रुकेगा? शराबमुक्त बिहार को यदि श्रेष्ठ उच्च शिक्षायुक्त राज्य बनाया जा सके तो कोई राज्य हमारा मुकाबला नहीं कर सकेगा।
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शराबबंदी की सफलता पर बिहार का इतराना स्वाभाविक है यद्यपि मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा जारी श्रेष्ठतम शिक्षा संस्थानों की सूची में बिहार का नाम गुम पाकर हम शर्मिंदा भी हुए। सवाल यह है कि जो राजनीतिक इच्छाशक्ति शराबबंदी जैसा दुरूह लक्ष्य हासिल कर सकती है, वही इच्छाशक्ति शैक्षिक सुधार के मोर्चे पर क्यों नहीं दिखती?

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]