झारखंड में बिजली संबंधी सुविधाओं की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा कही गई एक बात के गंभीर निहितार्थ हैं। उन्होंने महकमे के भ्रष्ट अधिकारियों का तबादला करने के बजाय बर्खास्त करने की वकालत कर पूरी व्यवस्था को यह संदेश दिया है। दरअसल तबादला तो कोई सजा ही नहीं है। जिसका आचरण भ्रष्ट हो, वह दूसरी जगह पर भी ऐसा ही करेगा। ऐसे में तबादला करने का सीधा मतलब यही है कि यहां का गंदा वहां रख दिया। जो अंग सड़ गया हो, उसको अलग कर देना ही उचित होता है।

इसके साथ ही राजस्व मद का बकाया रखने वाले लोग निश्चय ही विकास में सहयोग नहीं कर रहे। सरकार का पैसा लंबित रखने का एक अर्थ उसको किसी न किसी तरह पचा जाने की मानसिकता का भी द्योतक है। अपना पैसा तो कोई कहीं भी कभी नहीं छोड़ता। जब सुविधाओं का उपभोग किया जा रहा है तो विधिसम्मत तरीके से उसका राजस्व भी समय पर अदा किया ही जाना चाहिए। जिन एजेंसियों को राजस्व संग्रह करने की जवाबदेही है, वे इस विषय पर यदि मौन साधे रहते हैं, तो प्रकारांतर से यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा ही है।

जब सुविधाओं के बदले राजस्व के विनिमय की व्यवस्था है तो इसका हर हाल में दोनों पक्षों द्वारा पालन किया ही जाना चाहिए। जब जमीन या वाहन का निबंधन कराने में राजस्व भुगतान में एकदम विलंब नहीं किया जाता तो बिजली के उपभोग के बावजूद मौन साधे रहने की मंशा शंका उत्पन्न करती ही है। ऐसे बकायेदारों पर तत्काल कार्रवाई होनी चाहिए।

बिजली जैसी अत्यंत आवश्यक सुविधा के एवज में बाकी आधारभूत संरचनाएं मसलन जल जाने या किसी भांति खराब हो जाने पर ट्रांसफार्मर बदलने की प्रक्रिया में उपभोक्ताओं से चंदाखोरी की प्रवृत्ति पर भी रोक लगाने का निर्देश सर्वथा जनाभिमुख है। यह काम सरकारी व्यवस्था का है। इसे जनता पर कतई नहीं लादा जाना चाहिए। उपभोक्ताओं से ली गई चंदे की रकम किसी भी हाल में राजकोष में नहीं जाती। वह संबंधित अधिकारियों की जेब में चली जाती है। यह बात उपभोक्ता शायद नहीं समझते।

इसलिए एक तो उपभोक्ताओं को सरकारी सुविधाओं के एवज में विहित राशि के अलावा एक पैसा भी नहीं देना चाहिए, दूसरे जो लोग ऐसी कोई राशि लेने का प्रयास करते हैं, उन पर कार्रवाई भी आवश्यक है। सार्वजनिक बिजली उपलब्ध कराने वाली एजेंसियां अबतक भ्रष्टाचार की गढ़ रही हैं। ऐसे गढ़ का समुचित इलाज अत्यंत आवश्यक है।

( स्थानीय संपादकीय: झारखंड)