यह चुनाव मोदी की लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट साबित होना जा रहा है। साथ ही आप नेता अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक दशा और दिशा भी तय करने जा रहे हैं


दिल्ली की जनता ने रविवार को मतदान कर स्थानीय सरकार के लिए अपनी पसंद बता दी है। तीन दिन के बाद नतीजा बेशक सामने आएगा, लेकिन यह भी सच है कि दिल्ली की तीनों नगर निगमों के चुनाव ने इस बार एक अलग राजनीतिक माहौल बनाया है। बेशक यह चुनाव पार्षदों का है, लेकिन इस छोटे चुनाव पर बड़े-बड़े दांव लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में पिछले दिनों हुए चुनाव के बाद अब निगम चुनाव के नतीजे दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का लिटमस टेस्ट साबित होना जा रहा है। वहीं, ये नतीजे प्रचंड ऐतिहासिक बहुमत से दो साल पहले दिल्ली की सत्ता में लौटी आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल की आगे की राजनीतिक दशा और दिशा भी तय करने जा रहे हैं। यदि भाजपा तीनों निगमों में सत्ता बचाने में कामयाब रहती है तो यह इस बात का संकेत होगा कि जिस जनता ने दो साल पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिरे से खारिज कर दिया था। उसी जनता जनार्दन ने मोदी के नेतृत्व में भरपूर भरोसा जताया है।
यह इस बात का भी संकेत होगा कि दिल्ली में आप की जमीन दरक रही है और राज्य सरकार की रीति-नीति से जनता संतुष्ट नहीं है। यदि बाजी आप के हाथ लगती है तो यह केजरीवाल के राजनीतिक कद को और ऊंचा करेगी। साथ ही राजधानी की सियासी जमीन भाजपा के लिए और चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। फिर भाजपा नेतृत्व को बाकी देश को इसे समझाने में थोड़ी मुश्किल आएगी कि आखिर दिल्ली उनसे दूर क्यों है? वहीं, चुनावी मैदान की तीसरी खिलाड़ी कांग्रेस के लिए यह आधार और प्रतिष्ठा दोनों बचाने का एक राजनीतिक मौका है। वह अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह राजनीतिक संकेत होगा कि भले ही देश के अन्य हिस्सों में सबसे पुरानी पार्टी जमीन खो रही है, लेकिन राजधानी की जनता के मन में कांग्रेस के लिए सुरक्षित जगह अब भी बाकी है। बहरहाल, यह सब कयासबाजियां हैं। अनुमान के विपरीत, तल्ख मौसम और तपती धूप के बीच मतदाताओं के औसत उत्साह ने तमाम कयासों और संभावनाओं को अधिक उलझा दिया है। नतीजा तीन दिन बाद आएगा, तब तक सियासी गलियारों की जुगुप्सा जन उत्कंठा से किसी रूप में कम नहीं रहेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]