राज्य के लोक निर्माण मंत्री नईम अख्तर के इंजीनियरों और निर्माण एजेंसियों को यह निर्देश देना कि वे निर्धारित समय सीमा में परियोजनाओं को पूरा करें, सराहनीय कदम तो है बशर्ते इसमें गंभीरता दिखे। विडंबना यह है कि कई परियोजनाओं पर कई वर्ष से काम लटक जाने के कारण बिल्डिंग मैटीरियल की कीमत भी बढ़ जाती है और काम अधर में लटक जाता है। कई बार तो सरकार की ओर से समय पर पैसा न मिलने के कारण भी ठेकेदारों को भी मजबूरी में काम बीच में छोड़ देना पड़ता है। सरकार ने इस बार तो बजट में विभागों को आवंटित होने वाली आधी राशि पहले ही मुहैया करवा दी है ताकि निर्माण कार्यों में विलंब न हो। विगत दिवस राज्य के लोक निर्माण मंत्री ने श्रीनगर में विभिन्न निर्माणाधीन परियोजनाओं का जायजा लेने के बाद अधिकारियों को यह निर्देश दिए कि विलंब किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं होगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर में बिगड़े हालात का असर विकास पर पड़ा है। विडंबना यह है कि जम्मू शहर में महत्वाकांक्षी केबल कार और तवी नदी पर कृत्रिम झील का काम कई वर्ष बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। हद तो यह है कि राज्य में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की वर्ष 2008 में सरकार बनी तो कांग्रेस ने कृत्रिम झील के निर्माण की जगह को ही बदल दिया। जहां अब निक्की तवी क्षेत्र में झील का काम चल रहा है, पिछली दो बरसात में बाढ़ के कारण पिल्लर ही जवाब दे गए। इससे करोड़ों रुपये बाढ़ में बह गए। केबल कार, मल्टी स्टोरी पार्किंग परियोजनाओं पर अभी काम शुरू हुआ है। यहां तक कि कृत्रिम झील परियोजना में करोड़ों रुपये बर्बाद होने की मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश भी दिए हैं। अब देखना यह है कि क्या घाटी में बिगड़े हालात के बाद विकासशील परियोजनाएं गति पकड़ सकेंगी। दुखद पहलू यह है कि राज्य में जितनी भी सरकारें आईं, उन्होंने इन पर गंभीरता कम और राजनीति अधिक की। प्रधानमंत्री पुनर्निर्माण योजना के तहत राज्य को मिली अस्सी हजार करोड़ रुपये की राशि को विभिन्न क्षेत्रों में आवंटन में भी तेजी लानी होगी। इसके अलावा विभागों में कई वर्षों से कार्यरत हजारों की संख्या में अस्थायी कर्मचारियों को पक्का करना भी सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं होंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वे लोगों की समस्याओं को भी प्राथमिकता दे।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]