गर्मी शुरू होते ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अगलगी की घटनाओं में वृद्धि हो गई है। छोटी सी चूक से बड़े नुकसान की खबर हर रोज आ रही है। ऐसे में जरूरत है लोगों को अगलगी को रोकने के उपायों को बताना। यदि सतर्कता बरती गई तो कई हादसों को रोका जा सकता है। विशेषकर उन स्थानों पर ये घटनाएं तबाही मचाती हैं, जहां फूस और खपरैल के आवास बने होते हैं। इनकी बनावट इतनी सघन और बेतरतीब होती है कि आग पर नियंत्रण पाना कठिन हो जाता है। गर्मी के पूर्व ही ऐसी बसावटों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों के लोगों को अगलगी की घटनाओं पर संवेदनशील होकर काम करना होगा। आग से बचाव के लिए प्रशिक्षण का कार्यक्रम शहरों में तो दिखता है, गांवों में इनकी पहुंच न के बराबर है। वैसी आबादी को लक्ष्य कर काम करने की जरूरत है, जो सड़कों के किनारे, नदियों के बांध या सघन बस्ती में निवास करती है। आस-पास पानी की समुचित व्यवस्था न हो पाने के कारण अगलगी के बाद पूरी की पूरी बस्ती राख हो जाती है। ऐसे परिवार अल्प आय वाले होते हैं। आग की तबाही से उबर पाना इनके लिए आसान नहीं होता। मुआवजे के तौर पर मिली सहायता थोड़ी राहत देती है, लेकिन कई जगहों पर मुआवजा समय पर न मिल पाने की भी शिकायतें मिलती हैं। तत्काल ऐसे परिवारों को सिर ढकने और खाने-पीने की व्यवस्था की जरूरत होती है। यह राहत तभी संभव है जब प्रशासन के साथ-साथ पास-पड़ोस के सामथ्र्यवान लोग सेवा भाव से जुटें। बचाव के लिए उपलब्ध संसाधनों पर भी गौर करने की जरूरत है। अधिकांश जगहों पर पुराने संसाधनों से ही काम चलाया जा रहा है। शहरी क्षेत्र की अगलगी पर किसी तरह नियंत्रण हो जाता है, लेकिन ग्र्रामीण इलाकों में इसपर नियंत्रण का कोई कारगर इंतजाम नहीं दिखता। इसी वजह से स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों के बूते आग पर नियंत्रण पाने के प्रशिक्षण की सख्त आवश्यकता है। इस गर्मी प्रदेश में अब तक लाखों की संपत्ति की क्षति हो चुकी है। हाल ही में भागलपुर की कुमैठा पंचायत में दो साल के एक बच्चे की जलकर मौत भी हो चुकी है। इन घटनाओं में पशु धन की भी क्षति हुई है। कुछ अग्नि पीडि़तों के समक्ष मुआवजा का चेक मिलने के बाद जल चुकी बैंक पासबुक और चेकबुक की वजह से समस्या आड़े आ रही है। इसके निदान के प्रति भी गंभीर होने की जरूरत है।
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हाईलाइटर
विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में अगलगी की घटनाओं पर नियंत्रण और उससे बचाव के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से तंत्र विकसित कर नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]