कभी खुशहाली का प्रतीक रहे पंजाब के किसान आज कर्ज के मर्ज से बेहाल हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कर्ज का दबाव आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है। यह दबाव विगत लंबे समय से किसानों को ङोलना पड़ रहा है और यदा-कदा अपनी सीमाएं पार कर जा रहा है, जिसकी परिणति किसान द्वारा आत्महत्या के रूप में सामने आ रही है। गत दिवस भी जालंधर व मानसा में दो किसानों ने कर्ज से परेशान होकर अपनी जान दे दी। यह समस्या विगत कई वर्षो में किस कदर जटिल रूप धारण कर चुकी है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में नशे के साथ ही किसानों पर कर्ज बहुत बड़ा मुद्दा बनकर उभरा। भारी जनादेश के साथ प्रदेश की सत्ता प्राप्त करने वाली नई सरकार ने भी किसानों का कर्ज माफ करने की बात अपने घोषणा पत्र में की थी। हालांकि यह इतना आसान नहीं है। चूंकि किसानों का कर्ज माफ करने के लिए सरकार को बहुत बड़ी रकम की आवश्यकता है और इसकी व्यवस्था करने के लिए सरकार को कुछ समय देना चाहिए। आवश्यकता इस बात की है कि किसान भी धैर्य रखें और नई सरकार को कुछ वक्त दें। सरकार को भी चाहिए कि वह कर्ज माफी के लिए जारी प्रयासों में और तेजी लाए। इसके साथ ही किसानों का विश्वास बहाल करने के लिए भी उचित कदम उठाना बेहद जरूरी है। यह सर्वविदित है कि प्रदेश के अधिकतर किसानों ने आढ़तियों से कर्ज लिया है, जो उनके लिए सर्वाधिक परेशानी का कारण है। बैंकों के कर्ज से तो सरकार मुक्ति दिला देगी, लेकिन आढ़तियों के कर्ज का क्या होगा? किसानों पर सर्वाधिक दबाव आढ़तियों के कर्ज का ही होता है, जिन्हें न चुका पाने पर उन्हें घोर मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। प्रदेश सरकार को इस समस्या के निदान के लिए भी ठोस कदम उठाना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]